दलाई लामा ने दोहराया: next Dalai Lama का चुनाव पारंपरिक तरीके से होगा, China बाहर

दलाई लामादलाई लामा ने घोषणा की है कि उनकी पुनर्जन्म की परंपरा जियती रहेगी और उनके उत्तराधिकारी “free world” (मुक्त दुनिया) में जन्मेंगे—not in China—ताकि चीन के हस्तक्षेप को रोका जा सके। यह स्पष्ट रूप से चीन द्वारा उत्तराधिकारी नामित करने के दावों को चुनौती देता है, क्योंकि वे इसे ‘Golden Urn’ प्रक्रिया से चुनना चाहते हैं।

Gaden Phodrang Trust को अधिकार:
दलाई लामा का कहना है कि उनके पुनर्जन्म को पहचानने की पूरी जिम्मेदारी Gaden Phodrang Trust (दलाई लामा कार्यालय, Dharamshala) के पास होगी, और इसके लिए सिर्फ वे ही प्रक्रिया से गुजरेंगे। इस ट्रस्ट में वरिष्ठ मोनक जैसे Samdhong Rinpoche शामिल हैं, और यह संगठन पूरी तरह भारत में आधारित है।

उत्तराधिकारी चुनने में परंपरा का पालन:
उत्तराधिकारी की पहचान परंपरागत बौद्ध रीति-रिवाजों के अनुसार की जाएगी—इसे केवल Trendor (spiritual heads), Dharma Protectors, और Gaden Phodrang Trust द्वारा ही किया जाएगा; किसी अन्य हस्तक्षेप की अनुमति नहीं होगी।

90वीं जन्मतिथि और आधिकारिक बयान:
दलाई लामा का यह पूरा कथन उनके 90वें जन्म दिन (6 जुलाई 2025) के उपलक्ष्य में Dharamshala में आयोजित धार्मिक समारोहों के बीच आया, जब उन्होंने धर्मगुरुओं से सलाह लेने का संकेत देते हुए उत्तराधिकारी चुनने की रूपरेखा पेश की।

चीन-तिब्बत-भारत का भू‑राजनीतिक मायाजाल

  • China का विधिक दावा है कि “Golden Urn” प्रक्रिया और सरकारी मंज़ूरी (2007 के नियमों अनुसार) ही वैध हैं

  • उन्होंने स्पष्ट कहा कि उनका अपना Dalai Lama नामित हो सकता है — जिससे दो संस्करण (rival Dalai Lamas) सामने आ सकते हैं

  • तिब्बती निर्वासित समुदाय और धर्मगुरु इसे “spiritual lottery” करार दे चुके हैं — चीनी हस्तक्षेप को वे “hijacking” मानते हैं

भारत के लिए जोखिम और अवसर

  • भारत में दलाई लामा और तिब्बती सरकार‑in‑exile (Dharamshala) की भूमिका रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है

  • China भारत को चेतावनी दे सकता है कि यदि वह चयन प्रक्रिया में सक्रिय हुआ तो यह द्विपक्षीय तनाव को बढ़ा सकता है

  • वहीँ, India Today Global को दिए एक इंटरव्यू में विशेषज्ञ Dr. Jabin Jacob ने कहा कि भारत को इसमें नैतिक और राष्ट्रीय हितों के आधार पर खुला और स्पष्ट रुख अपनाना चाहिए

राजनीतिक-धार्मिक प्रभाव और चीन की प्रतिक्रिया:
चीन ने तुरंत प्रतिक्रिया दी और कहा कि दलाई लामा को पुनर्जन्म प्रक्रिया चीन में ही होनी चाहिए और सरकार के अनुमोदन के बाद ही वैध मानी जाएगी। वहीं अमेरिकी विदेश विभाग ने चीन को धर्म की स्वतंत्रता का सम्मान करने की अपील की ।

अंतर्राष्ट्रीय प्रतिक्रियाएँ

  • US सरकार ने स्पष्ट किया है कि succession में China की कोई भूमिका नहीं हो — यह दावा religious freedom का उल्लंघन है

  • China ने तुरंत अपनी सलाह पहले वाली विधि का दोहराया — यानी Golden Urn और Beijing की अंतिम मंजूरी आवश्यक है

भारत के सामने रणनीतिक चुनौतियाँ

  • भारत को चुनाव का सकारात्मक समर्थन और तालमेलपूर्ण रुख रखना होगा — ताकि Beijing को यह न लगे कि भारत तिब्बती मुद्दे को केवल संसाधन की तरह प्रयोग करने लगा है

  • एक भविष्य‑निर्मित (future‑proof) नीति जरूरी है — जैसे कि सुरक्षा कवरेज बढ़ाना (CRPF/Z-category), धर्मगुरुओं के साथ तालमेल, और अंतरराष्ट्रीय समुदाय के साथ साझेदारी

  • यदि दलाई लामा का उत्तराधिकारी India या “free world” में पैदा होता है, तो यह Beijing को प्रेरित करेगा कि वे अपना स्वयं का बदला हुआ avatar घोषित करें — जिससे भारत और तिब्बती समुदाय को गंभीर निर्णय‑स्थली चुननी होगी

अन्य प्रमुख घटनाएं:

  • मार्च 2025 में प्रकाशित उनकी नई पुस्तक “Voice for the Voiceless” में उन्होंने यह बात दोहराई कि उनका उत्तराधिकारी “free world” में होगा।
  • उन्हें हाल ही में Gold Mercury Award 2025 से सम्मानित किया गया, शांति और सततता के योगदान के लिए।

दलाई लामा की रणनीति और स्थिति

  • संस्थान जारी रहेगा और पुनर्जन्म होगा।
  • उत्तराधिकारी ट्रस्ट द्वारा मान्य होगा, न कि चीन द्वारा।
  • प्रक्रिया परंपरागत रीति-रिवाज के अनुसार की जाएगी।
  • 90वीं वर्षगांठ के अवसर पर उनका संदेश वैश्विक स्तर पर ध्यान आकर्षित कर रहा है।

दलाई लामादलाई लामा का जन्म Lhamo Dhondup नाम से 6 जुलाई 1935 को तिब्बत के Amdo क्षेत्र के Taktser गांव में हुआ था। दो वर्ष की उम्र में उन्हें 13वें दलाई लामा का पुनर्जन्म स्वीकारा गया, और उन्हें नाम दिए गए—Jetsun Jamphel Ngawang Lobsang Yeshe Tenzin Gyatso

शिक्षा और आध्यात्मिक प्रशिक्षण

  • चार वर्ष की उम्र में उन्हें Potala Palace में राजसूय किया गया

  • छह वर्ष की उम्र से उन्होंने बौद्ध धार्मिक शिक्षा ली, जिसमें तर्कशास्त्र, तत्वज्ञान, विशेष रूप से प्रज्नापरमिता, मध्यमिका और अभिधर्म शामिल थे

  • 1959 में Jokhang मंदिर में दिए गए अंतिम परीक्षा में, उन्होंने Geshe Lharampa उपाधि प्राप्त की—जो बौद्ध दार्शनिक डॉक्टरेट के सामान है

राजनीतिक नेतृत्व और निर्वासन

  • दलाई लामा1950 में, मात्र 16 वर्ष की आयु में, दलाई लामा ने तिब्बत की पूर्ण राजनीतिक शक्ति संभाली जब चीन ने वहां आक्रमण किया

  • 1954 में उन्होंने Mao Zedong सहित चीनी नेताओं से शांति वार्ता की, पर 1959 में तिब्बत में चीनी दमन के बाद वह भारत भागे

  • निर्वासन के बाद उन्होंने Dharamshala, India में Tibetan Government-in-Exile (Central Tibetan Administration) स्थापित किया

लोकतांत्रिक सुधार एवं शिक्षा

  • उन्होंने 1963 में तिब्बती प्रलंबित संविधान प्रकाशित किया, जिसमें अधिकार, धर्मनिरपेक्ष शासन और लोकतांत्रिक पद्धति का प्रस्ताव था

  • Dharamshala में Tibetan Library and educational institutions की स्थापना की, जिसमें Library of Tibetan Works and Archives शामिल हैं

मान्यता और अंतरराष्ट्रीय योगदान

  • 1989 में शांति के क्षेत्र में योगदान हेतु उन्हें Nobel Peace Prize से सम्मानित किया गया

  • उन्होंने अन्य सम्मान, जैसे Templeton Prize (2012), U.S. Congressional Gold Medal (2007), Ramon Magsaysay Award (1959) सहित 150+ पुरस्कार प्राप्त किए

वैश्विक प्रभाव और आधुनिक योगदान

  • दलाई लामा वह पहले धर्मगुरु हैं जिन्होंने Western देशों में जाकर बुद्ध धर्म, compassion, और non-violence का संदेश दिया

  • उन्होंने विज्ञान, पर्यावरण, मानवाधिकार, महिलाओं के अधिकारों, और अन्तरधार्मिक संवाद जैसे विषयों पर भी वृहद रूप से कार्य किया

  • 2011 में उन्होंने शासकीय जिम्मेदारी निर्वाचित नेतृत्व को सौंप दी और केवल आध्यात्मिक नेता बने रहे

हाल की पुस्तकें और अनुभव

  • मार्च 2025 में उनकी आत्मकथा “Voice for the Voiceless: Over Seven Decades of Struggle With China” प्रकाशित हुई, जिसमें तिब्बत के लिए उनके संघर्ष और भविष्य की दृष्टि शामिल है

  • वर्तमान में वे आध्यात्मिक शिक्षाएं देते हैं और सीमित रूप से भारत में इंटरलिव वेबकास्ट के माध्यम से लोगों से जुड़ते रहते हैं

दलाई लामा Tenzin Gyatso न केवल तिब्बती धर्म और संस्कृति के संरक्षक रहे, बल्कि विश्वभर में शांति, करुणा, और मानवता के संदेशवाहक भी बने। उनकी जीवन यात्रा शिक्षा, नेतृत्व, निर्वासन, लोकतांत्रिक सुधार और वैश्विक योगदान से संपूर्ण है।

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