कल, 8 जुलाई 2025 (मंगलवार) को आषाढ़ शुक्ल त्रयोदशी तिथि को है, और यह दिन भौम प्रदोष व्रत (मंगल प्रदोष) के रूप में मनाया जाएगा। इस व्रत का शुभ मुहूर्त शाम 07:23–09:24 बजे (IST) के बीच रहेगा। यह व्रत भगवान शिव को समर्पित है और विशेष रूप से मंगल ग्रह के दोषों को शांत करने, ऋण मुक्ति, स्वास्थ्य लाभ और संतान सुख की प्राप्ति के लिए किया जाता है। इस बार का प्रदोष व्रत चातुर्मास के दौरान पड़ रहा है, जब भगवान विष्णु योगनिद्रा में होते हैं और सृष्टि का संचालन भगवान शिव करते हैं, जिससे इस व्रत का महत्व और बढ़ जाता है।
व्रत तिथि और प्रदोष काल
त्रयोदशी आरंभ: 7 जुलाई 2025, रात 11:10 बजे
त्रयोदशी समाप्ति: 8 जुलाई 2025, दोपहर 12:38 बजे
प्रदोष पूजा काल: शाम 7:23 से रात 9:24 बजे
महत्त्व
- मंगल ग्रह (भौम) और भगवान शिव की संयुक्त पूजा से भौम दोष शांत होता है।
- इसका प्रभाव ऋण मुक्ति, स्वास्थ्य लाभ, संतान सुख, साहस और आत्मबल में वृद्धि के रूप में माना जाता है।
- आषाढ़ महीने का यह अंतिम प्रदोष व्रत है—इस कारण इसका धर्म की दृष्टि से और भी अधिक महत्व है।
पूजा-विधि
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प्रातःकाल जल्दी उठकर शुद्ध स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण कर व्रत का संकल्प लें; यह संकल्प श्रद्धा और भक्ति के साथ करने से समस्त अनुष्ठानों की पवित्रता बनी रहती है।
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दिनभर आप निर्जला व्रत रख सकते हैं या फलाहारी विकल्प ग्रहण कर सकते हैं, जैसे साबूदाने की खिचड़ी, कुट्टू के पकोड़े, उबले आलू, तथा ताजे फल – जो व्रत को सहज बनाते हैं।
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शाम के प्रदोष काल में, जो सूर्यास्त से लगभग 45 मिनट पूर्व शुरू होकर सूर्यास्त के 45 मिनट बाद तक रहता है, आप घर या मंदिर में शिव-पूजा प्रारंभ करें।
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सबसे पहले शिवलिंग का पंचामृत से अभिषेक करें—दूध, दही, घी, शहद और शक्कर मिलाकर—जो शिवजी को अत्यंत प्रिय है।
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इसके बाद बेलपत्र, धतूरा, अक्षत, भस्म, शमी पत्र, पुष्प और गंगाजल अर्पित करें; ध्यान रहे तुलसी, केतकी, सिंदूर-हल्दी, नारियल का पानी आदि सामग्री चढ़ाई नहीं जातीं।
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दीप-अगरबत्ती जलाकर घर में सुगंध और प्रकाश फैलाएँ, और “ॐ नमः शिवाय” मंत्र का कम से कम 108 बार जाप करें—यह शुभ फल प्राप्ति का मार्ग है।
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उसके बाद मन, बुद्धि और वाणी से प्रसन्न होकर भगवान शिव और माता पार्वती की आरती उतारें, साथ में रुद्राभिषेक या शिव चालीसा का पाठ भी करना लाभदायक माना जाता है।
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अंत में प्रदोष व्रत कथा सुनी जाती है जिसे सुनने और सुनाने से व्रत की महिमा बढ़ती है।
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भोग लगाने के बाद प्रसाद वितरित करें और रात्रि में भोजन से परहेज करें; पूरा दिन व्रत और पूजा मिस्ड ना हो, और यदि संभव हो तो अगले दिन पारायण भी करें ।
इस विधि से श्रद्धा पूर्ण एवं नियमबद्ध ढंग से पूजा-अर्चना करने से प्रदोष व्रत का संपूर्ण लाभ मिलता है और भक्त को भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
भौम प्रदोष व्रत कथा
एक प्राचीन नगर में एक वृद्धा अपनी प्रगाढ़ भक्ति के लिए विख्यात थी। उसके एकमात्र पुत्र के साथ उनका घर-आँगन चलता था, पर वृद्धा की हृदयस्पर्शी श्रद्धा हनुमानजी पर अत्यधिक थी। हर मंगलवार वह नियमपूर्वक व्रत रखती और भक्ति-भाव से हनुमानजी की पूजा-अर्चना किया करती थी। एक बार हनुमानजी ने वृद्धा की भक्ति का परीक्षण करने का निश्चय किया और साधु वेश धरकर उसके घर पहुँचे। उन्होंने कहा:“है कोई हनुमान भक्त जो मेरी इच्छा पूरी कर सके? मैं भूखा हूँ, भोजन करूंगा, बस तू थोड़ी जमीन लीप दे।”
वृद्धा इन परिस्थितियों में घबरा तो गई, परंतु अपनी श्रद्धा के अनुसार उन्होंने कहा कि मिट्टी खोदने और जमीन लिपने के अलावा कोई काम बताइए, मैं अवश्य करूंगी। साधु ने तीन बार उसे वादा करवाया और फिर बोला:“अपने पुत्र को बुला लाना। मैं उसकी पीठ पर आग लगाकर भोजन तैयार करूँगा।”
वृद्धा ने बेटे के सामने अपना वचन पूरा किया, उसे पेट के बल जमीन पर लिटाया और उसकी पीठ पर अग्नि दी। अत्यंत दुःखित हो वह घर चली गई। कुछ देर में साधु ने भोजन तैयार करके वृद्धा को बुलाया और कहा कि पुत्र को बुलाकर भोग लगाएं। वृद्धा ने विरोध किया, पर जब साधु अड़े रहे, तो उसने पुत्र को पुकारा—और चमत्कारिक रूप से वह जीवित, स्वस्थ और प्रसन्न वातावरण में आया। तब साधु ने अपना असली रूप प्रकट किया—हनुमानस्वरूप में। उन्होंने वृद्धा की अडिग श्रद्धा की सराहना की, उसे और भी दृढ़ आशीर्वाद दिए और जीवन का मार्ग प्रशस्त किया।
इस कथा से स्पष्ट होता है कि मंगलवार प्रदोष व्रत, जिसे भौम प्रदोष भी कहते हैं, श्रद्धा, त्याग और ईश्वर भक्ति का प्रतीक है। इस व्रत को करने तथा कथा का पाठ करने से भक्तजन को हनुमानजी की कृपा प्राप्त होती है, साथ ही आर्थिक, स्वास्थ्य संबंधी और आत्मिक बाधाओं का निवारण होता है।
इस कथा से सीखने योग्य महत्वपूर्ण बिंदु हैं:
- पूर्ण श्रद्धा और ईमानदारी से किए गए व्रत का फल बिना किसी संशय के मिलता है।
- कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी अपने वचनों का निर्वाह करना पवित्र कर्म है।
- व्रत एवं कथा एक साथ करने से मनोकामना पूर्ति होती है और जीवन में समृद्धि आती है।
व्रत के साथ कथा का पाठ अनिवार्य माना जाता है — इससे भौम प्रदोष व्रत पूर्ण रूप से सिद्ध होता है और भक्त को भगवान शिव तथा हनुमानजी की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
विशेष उपाय
- कच्चा दूध, गंगाजल, गुड़, केसर के साथ तांबे के लोटे में अभिषेक करने से धन-कार्य में लाभ और ऋण-निवारण में शीघ्रता आती है।
- आटे का दीपक जलाना, धतूरा अर्पित करना, और शिव चालीसा का पाठ विशेष फलदायी।
- आवश्यकतानुसार दान करें — अन्न, जल, दीपक, तेल, कपड़े आदि।
लाभ
- मंगल दोष शांति – मंगल ग्रह के नकारात्मक प्रभावों से मुक्ति।
- ऋण से राहत – नियमित व्रत से कर्ज संबंधी परेशानियों में कमी ।
- स्वास्थ्य व संतान सुख – शारीरिक और पारिवारिक कल्याण बढ़ता है ।
- मानसिक शांति व आशीर्वाद – भगवान शिव और माता पार्वती की कृपा से जीवन में सुख-शांति व समृद्धि प्राप्त होती है।
8 जुलाई 2025 को भौम प्रदोष व्रत का यह पूरा विवरण — तिथि, मुहूर्त, महत्व, पूजा-विधि, उपाय एवं लाभ — आपको स्पष्ट रूप से व्रत पालन में मददगार सिद्ध होगा। श्रद्धा और नियमित विधि अपनाकर आप जीवन में सकारात्मक बदलाव का अनुभव कर सकते हैं।