व्रत, वटवृक्ष और व्रता की निष्ठा: 2025 में 10 जून को विशेष पूजन

वट सावित्री व्रत 10 जून 2025: संपूर्ण जानकारी

वट सावित्री व्रत हिंदू धर्म में सुहागिन महिलाओं द्वारा किया जाने वाला एक महत्वपूर्ण व्रत है, जो पति की दीर्घायु, सुख और समृद्ध जीवन के लिए रखा जाता है। वर्ष 2025 में यह व्रत 10 जून, मंगलवार के दिन मनाया जाएगा। यह पर्व विशेष रूप से उत्तर भारत, महाराष्ट्र, गुजरात और बिहार में बड़ी श्रद्धा और आस्था के साथ मनाया जाता है। व्रत का आधार पौराणिक कथा है जिसमें सावित्री ने अपने पति सत्यवान को यमराज से पुनः जीवन दिलाया था, इसलिए इस व्रत में सावित्री के साहस, तप और भक्ति को स्मरण किया जाता है।

व्रत का शुभ मुहूर्त (10 जून 2025 के लिए):

  • व्रत तिथि: मंगलवार, 10 जून 2025

  • पुण्यकाल (पूजा समय): सुबह 04:50 AM से दोपहर 01:25 PM तक

  • व्रत प्रारंभ (वट अमावस्या): 09 जून 2025 की रात 11:24 PM से

  • व्रत समाप्ति (अमावस्या तिथि): 10 जून 2025 की रात 09:45 PM तक

इस अवधि में व्रत, पूजन, कथा श्रवण व परिक्रमा करना अत्यंत शुभ माना जाता है।

इस दिन महिलाएं प्रातःकाल स्नान करके व्रत का संकल्प लेती हैं, निर्जला उपवास करती हैं और सुहाग सामग्री धारण करती हैं जैसे कि लाल साड़ी, सिंदूर, चूड़ी और बिछुए। वे वट (बरगद) वृक्ष की पूजा करती हैं, जिसे अक्षय जीवन और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। पूजा में दूध, जल, फल, फूल, भीगे चने, मिठाई, सूत का धागा (कच्चा धागा) और पवित्र कथा शामिल होती है। महिलाएं वट वृक्ष की परिक्रमा करके सूत के धागे से उसे लपेटती हैं और सावित्री-सत्यवान की कथा सुनती हैं। शाम को व्रत समाप्त होने पर जल और भोजन ग्रहण किया जाता है।

धार्मिक मान्यता है कि वट सावित्री व्रत रखने से पति की उम्र लंबी होती है, दांपत्य जीवन सुखमय रहता है और स्त्री को पुण्य लाभ प्राप्त होता है। इस दिन सुहागनें अन्य महिलाओं को सिंदूर, बिंदी, चूड़ी, और मिठाई देकर सुहाग का आशीर्वाद भी लेती हैं। यह पर्व स्त्री की निष्ठा, शक्ति और श्रद्धा का प्रतीक माना जाता है।

अधिकांश त्योहार अमांत और पूर्णिमांत पंचांगों में एक ही दिन पड़ते हैं। उत्तर भारत — विशेष रूप से उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, पंजाब और हरियाणा — में पूर्णिमांत पंचांग का पालन किया जाता है। जबकि महाराष्ट्र, गुजरात और दक्षिण भारत के राज्यों में अमांत पंचांग प्रचलित है।

हालाँकि, वट सावित्री व्रत इस नियम से थोड़ा अलग है। पूर्णिमांत पंचांग के अनुसार, यह व्रत ज्येष्ठ अमावस्या के दिन रखा जाता है, जो शनि जयंती के दिन पड़ता है। वहीं, अमांत पंचांग में इसे ज्येष्ठ पूर्णिमा को मनाया जाता है और इसे ‘वट पूर्णिमा व्रत’ भी कहा जाता है।

इस कारण उत्तर भारत की महिलाएँ वट सावित्री व्रत पहले रखती हैं, जबकि महाराष्ट्र, गुजरात और दक्षिण भारत की महिलाएँ यह व्रत 15 दिन बाद करती हैं। दोनों ही रूपों में व्रत की कथा और उसका महत्व एक समान होता है।

यह रही वट सावित्री व्रत 2025 की विस्तृत जानकारी तीन भागों में – पूजा विधि, व्रत कथा और आवश्यक सामग्री सूची:

1. वट सावित्री व्रत की पूजा विधि :

  1. स्नान एवं संकल्प:
    सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र पहनें। भगवान विष्णु, ब्रह्मा, शिव और वट वृक्ष को ध्यान में रखकर व्रत का संकल्प लें।
  2. व्रत पूजा सामग्री तैयार करें:
    पूजा स्थान पर वट वृक्ष या उसकी शाखा को रखकर कलश स्थापित करें। वृक्ष की जड़ में जल अर्पित करें और पूजा के लिए थाली सजाएं।
  3. वट वृक्ष की पूजा करें:
    वट वृक्ष की जड़ में हल्दी, कुमकुम, अक्षत, फूल, चूड़ी, सिंदूर अर्पित करें। वृक्ष के चारों ओर कच्चा सूत लपेटें और 7, 11 या 21 बार परिक्रमा करें।
  4. व्रत कथा श्रवण करें:
    पूजा के बाद व्रत कथा सुनें या पढ़ें। यह सबसे महत्वपूर्ण भाग होता है।
  5. पति के चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लें:
    पति की दीर्घायु के लिए प्रार्थना करें। फिर ब्राह्मणों या अन्य व्रती महिलाओं को भोजन कराकर व्रत खोलें।

2.सावित्री-सत्यवान व्रत कथा (वट सावित्री व्रत की मूल कथा)

प्राचीन समय की बात है। राजा अश्वपति की कोई संतान नहीं थी। उन्होंने पुत्री की प्राप्ति के लिए कठोर तप किया। अंततः देवी सावित्री ने उन्हें दर्शन देकर एक तेजस्विनी कन्या का वरदान दिया। समय आने पर राजा को एक अत्यंत सुंदर, गुणी, और बुद्धिमान कन्या प्राप्त हुई, जिसका नाम उन्होंने सावित्री रखा।

जब सावित्री युवती हुई, तो विवाह के लिए योग्य वर की खोज आरंभ हुई। एक दिन सावित्री वन में भ्रमण करते हुए सत्यवान नामक राजकुमार से मिली, जो एक वनवासी और धर्मात्मा राजा द्युमत्सेन का पुत्र था। द्युमत्सेन अंधे हो चुके थे और राज्य से वनवास में जीवन व्यतीत कर रहे थे। सावित्री ने सत्यवान को अपना जीवनसाथी चुन लिया।

जब नारद मुनि ने राजा अश्वपति को बताया कि सत्यवान अत्यंत गुणी तो है, परंतु वह एक वर्ष के भीतर मर जाएगा, तो सभी चिंतित हो उठे। परंतु सावित्री ने निश्चय किया कि वह सत्यवान से ही विवाह करेगी और उसके भाग्य को बदलेगी

विवाह के पश्चात सावित्री अपने पति और सास-ससुर के साथ वन में रहने लगी। जब एक वर्ष पूर्ण हुआ, तो उसने व्रत रखने का निश्चय किया। अमावस्या के दिन, उसने निर्जला व्रत किया और वट वृक्ष के नीचे बैठकर तप करने लगी।

उसी दिन जब सत्यवान लकड़ी काटने के लिए वन गया, सावित्री भी उसके साथ गई। सत्यवान की तबीयत अचानक बिगड़ी और वह सावित्री की गोद में गिर पड़ा। उसी समय यमराज वहां आए और सत्यवान के प्राण लेकर चलने लगे। सावित्री यमराज के पीछे-पीछे चलने लगी।

यमराज ने उसे समझाया कि वह केवल पत्नी धर्म निभा रही है, परंतु सावित्री ने धर्म, भक्ति, सेवा और विवेक से यमराज को प्रभावित किया। यमराज ने उसे वर मांगने को कहा। सावित्री ने पहले अपने ससुर के नेत्रों और राज्य की वापसी, फिर 100 पुत्रों का वर मांगा। यमराज ने हाँ कर दिया।

तब सावित्री ने कहा – “हे यमराज! यदि आपने मुझे सौ पुत्रों का वरदान दिया है, तो पहले मेरे पति को जीवन दीजिए, तभी यह संभव है।” यमराज अपनी बात से बंधे हुए थे, और सावित्री की दृढ़ निष्ठा से प्रसन्न होकर उन्होंने सत्यवान को पुनः जीवनदान दिया।

इस प्रकार सावित्री ने अपनी चतुराई, धर्मनिष्ठा और तप से अपने पति को मृत्यु से वापस पाया

3. घर पर पूजा की तैयारी :

व्रत की तैयारी के लिए आपको चाहिए:

  • एक छोटी चौकी या पट्टा

  • वट वृक्ष की टहनी (यदि बाहर न जा सकें तो चित्र या मिट्टी में लगाया पौधा भी चलेगा)

  • पूजा थाली में रखें:

    • रोली, चावल, सिंदूर

    • फूल, मिठाई, फल

    • एक कलश (जल भरा हुआ)

    • कच्चा सूत (मौली)

    • भीगे हुए चने

    • एक छोटी सी दीपक और घी

  • व्रत कथा पुस्तिका (या प्रिंटआउट)

  • पानी व फलाहार (व्रत समाप्ति के लिए)

पूजा घर में पूर्व दिशा की ओर मुख करके पूजा करें और कथा श्रवण के बाद व्रत खोलें।

यह कथा दर्शाती है कि सत्य, प्रेम, नारी शक्ति और धर्म के समर्पण से मृत्यु जैसे अटल नियम को भी बदला जा सकता है। सावित्री आज भी भारतीय स्त्रियों के लिए आदर्श पत्नी की प्रतीक हैं।

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