आत्मा की उन्नति का साधन: गुरु पूर्णिमा 2025

गुरु पूर्णिमा 2025

गुरु पूर्णिमा 2025 का पर्व 10 जुलाई, गुरुवार को मनाया जाएगा। यह दिन हिन्दू पंचांग के अनुसार आषाढ़ मास की पूर्णिमा को आता है और इसे ‘व्यास पूर्णिमा’ भी कहा जाता है, क्योंकि यह महर्षि वेदव्यास के जन्मदिवस के रूप में मनाया जाता है। वेदव्यास महाभारत के रचयिता और चारों वेदों के संकलक माने जाते हैं, जिन्हें ‘आदि गुरु’ माना जाता है। उन्होंने वेदों का विभाजन कर उन्हें व्यवस्थित किया और महाभारत, श्रीमद्भागवत, 18 पुराणों तथा ब्रह्म सूत्र जैसे महान ग्रंथों की रचना की। इस दिन शिष्य अपने गुरु के प्रति श्रद्धा, सम्मान और कृतज्ञता व्यक्त करते हैं।

गुरु पूर्णिमा 2025: तिथि और शुभ मुहूर्त

  • पूर्णिमा तिथि प्रारंभ: 10 जुलाई 2025 को रात 1:36 बजे

  • पूर्णिमा तिथि समाप्त: 11 जुलाई 2025 को रात 2:06 बजे

  • पूजा का उत्तम समय: 10 जुलाई को सूर्योदय से दोपहर 3:56 बजे तक, विशेषकर अभिजीत मुहूर्त (11:36 AM से 12:24 PM) में पूजा करना शुभ माना जाता है।

गुरु पूर्णिमा का महत्व केवल हिन्दू धर्म तक सीमित नहीं है; यह बौद्ध और जैन धर्मों में भी अत्यंत पवित्र माना जाता है। बौद्ध परंपरा में यह दिन विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि इसी दिन भगवान बुद्ध ने सारनाथ में अपना पहला उपदेश दिया था, जिसे ‘धर्मचक्र प्रवर्तन’ कहा जाता है।

गुरु पूर्णिमा का महत्व

  • गुरु शब्द का अर्थ: ‘गु’ का अर्थ है अंधकार और ‘रु’ का अर्थ है उसे हटाने वाला। अर्थात्, गुरु वह होता है जो अज्ञान के अंधकार को दूर कर ज्ञान का प्रकाश देता है।

  • महर्षि वेदव्यास: इस दिन महर्षि वेदव्यास का जन्म हुआ था, जिन्होंने वेदों का विभाजन कर उन्हें व्यवस्थित किया और महाभारत, श्रीमद्भागवत, 18 पुराणों तथा ब्रह्म सूत्र जैसे महान ग्रंथों की रचना की।

  • बौद्ध परंपरा में: गुरु पूर्णिमा के दिन से बौद्ध भिक्षु वर्षावास की शुरुआत करते हैं, जिसमें वे तीन महीने तक एक ही स्थान पर रहकर साधना, ध्यान और अध्ययन करते हैं।

इस वर्ष गुरु पूर्णिमा पर कई धार्मिक आयोजनों की योजना है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, जो गोरखनाथ मंदिर के पीठाधीश्वर भी हैं, गोरखपुर में गुरु पूर्णिमा के मुख्य अनुष्ठानों का नेतृत्व करेंगे। वे गुरु गोरखनाथ को ‘रोट’ अर्पित करेंगे, नाथ योगियों की समाधियों पर पूजा करेंगे और सामूहिक आरती में भाग लेंगे। इसके अलावा, श्रीराम कथा का समापन ‘पूर्णाहुति’ के साथ होगा, जो 4 जुलाई से प्रारंभ हुई थी।

गुरु मंत्र और दीक्षा

गुरु दीक्षा में गुरु शिष्य को एक विशेष मंत्र प्रदान करता है, जिसे ‘गुरु मंत्र’ कहा जाता है। यह मंत्र केवल शब्द नहीं, बल्कि ऊर्जा का स्रोत होता है और इसे गुप्त रखा जाता है। इसके नियमित जाप से मानसिक शांति, दुखों से मुक्ति और चित्त की स्थिरता मिलती है।

गुरु पूर्णिमा के दिन शिष्य अपने गुरु को पुष्प, वस्त्र, मिठाई आदि अर्पित करते हैं और उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। कई लोग इस दिन व्रत रखते हैं, मंदिरों में पूजा-अर्चना करते हैं और गुरु से संबंधित ग्रंथों का पाठ करते हैं। यह दिन आत्मचिंतन, साधना और गुरु के मार्गदर्शन में आध्यात्मिक उन्नति का अवसर प्रदान करता है।

भारत की परंपरा में “गुरु” केवल शिक्षक ही नहीं, बल्कि जीवन को दिशा और उद्देश्य देने वाले मार्गदर्शक माने गए हैं। यहाँ भारत के कई प्रमुख गुरुओं का संक्षिप्त वर्णन प्रस्तुत है:

प्राचीन और पौराणिक गुरुओं का परिचय

  • ऋषि वशिष्ठ
    राजा दशरथ के कुलगुरु, सप्तर्षियों में माने गए और महान भाष्यों के रचयिता थे।
  • ऋषि विश्वामित्र
    राजपूत से ब्रह्मर्षि बने; गायत्री मंत्र के रचयिता, अलग स्वर्ग लोक बनाकर प्रसिद्ध हुए।
  • परशुराम
    विष्णु के छठे अवतार, महान धनुर्धर और अपने शिष्यों—भीष्म, द्रोण आदि—को प्रशिक्षण दिलाया।
  • द्रोणाचार्य
    कौरव-पांडवों के गुरु, अर्जुन को दिव्य अस्त्र प्रदान करने वाले, धनुर्विद्या में प्रवीण।
  • महर्षि सांदीपनि
    श्रीकृष्ण, बलराम और सुदामा के गुरु; उज्जैन में आश्रम था जहाँ उन्होंने 64 कलाएँ सिखाईं।
  • आदि शंकराचार्य
    अद्वैत वेदांत को पुनर्जीवित करने वाले, चार मठों और धामों की स्थापना की।
  • गुरु वशिष्ठ, विश्वामित्र, गुरु अगस्त्य, वाल्मीकि, याज्ञवल्क्य, भारद्वाज
    ये सप्तर्षियों और अन्य महापुरुषों में शामिल हैं, जिन्होंने वेद, रामायण, मंत्र, शिल्प व राजनीति में योगदान दिया।

ऐतिहासिक और मध्ययुगीन गुरुओं

  • चाणक्य (कौटिल्य)
    चंद्रगुप्त मौर्य के रणनीतिक गुरु, राजनीति-राजतंत्र के महान विद्वान।
  • रामकृष्ण परमहंस
    स्वामी विवेकानंद के गुरु, धार्मिक एकता और सरल भक्ति के प्रवर्तक; रामकृष्ण मिशन की नींव डाली।
  • स्वामी विवेकानंद
    विश्व धर्म सम्मेलन (1893) के विद्वान और भारतीय आत्मा के प्रतिनिधि; रामकृष्ण परमहंस के मुख्य शिष्य ।
  • गुरु नानक देव
    सिख धर्म के संस्थापक, “एक ओंकार” के विचारक, ‘जपजी साहिब’ जैसे भक्ति-संग्रहों के रचयिता ।

बौद्ध व जैन गुरु

  • गौतम बुद्ध
    बौद्ध धर्म के संस्थापक, जिनके उपदेशों ने अहिंसा, मध्यम मार्ग, ध्यान को केंद्र बनाया।
  • महावीर स्वामी
    जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर; अहिंसा, सत्य, अचौर्य, संयम, अपरिग्रह पर बल दिया।

आधुनिक और समकालीन गुरु

  • अरबिंदो घोष
    राष्ट्रवादी, कवि और आध्यात्मिक चिंतक; पुदुचेरी में ‘अरबिंदो आश्रम’ स्थापित किया गया।
  • संत कबीर दास
    15वीं सदी के समाज-सुधारक संत, जाति और धर्म के बंधनों को तोड़ा – “जाति न पूछो साधु की…”।
  • नारायण गुरु, आचार्य तुलसी, भले बाबा, धीरेंद्र शास्त्री
    आधुनिक समय के ऐसे गुरु जिन्होंने सामाजिक सुधार, भक्ति और जन-कल्याण के कार्य किए ।

 

भारत में सिख धर्म के दस गुरु थे, जिनमें पहला गुरु·नानक देव और अंतिम जीवित गुरु·गोबिंद सिंह जी रहे। गुरु गोबिंद सिंह जी ने अपना देह त्यागने से पहले गुरु ग्रंथ साहिब को अंतिम और शाश्वत गुरु घोषित कर दिया।

गुरु जन्म–मृत्यु प्रमुख योगदान
गुरु नानक देव जी(1469–1539) सिख धर्म के प्रवर्तक; ईश्वर की एकता, मानवता और निःस्वार्थ सेवा के उपदेशक; 947 भजन जो गुरु ग्रंथ साहिब में शामिल मानव‑अधिकार, सामाजिक न्याय और अंधविश्वास के विरुद्ध अभियान; 28,000 किमी की तियारी भक्ति यात्राएँ
गुरु अंगद देव जी(1504–1552) गुरुमुखी लिपि की स्थापना; गुरु नानक के भजनों का संकलन; पहले स्कूल; 62–63 भजन शामिल गुरुमुखी लिपि का मानकीकरण और लंगर संस्थान को दृढ़ता से आगे बढ़ाया
गुरु अमर दास जी(1479–1574) लंगर व्यवस्था का विस्तार; स्त्री‑पुरुष समानता, अन्तर्जातीय विवाह, विधवाओं का पुनर्विवाह, संतति हत्या (सती) का पुरजोर विरोध; 869 भजन गोइंडवाल साहिब में 84 सीढ़ियों वाला बावली निर्माण; मेँढा‑मनजी संगठन; सुनीति‑आनंद विवाह विधि की स्थापना
गुरु राम दास जी(1534–1581) अमृतसर (रमदासपुर) की स्थापना; हरिमंदिर साहिब के मूल संरचना की शुरुआत; आनंद‑करार विवाह के लवण रचयिता; 638 भजन मन्य‑मसंद व्यवस्था, कीर्तन प्रचार, धार्मिक एवं सामाजिक संगठनात्मक ढांचे का विकास
गुरु अर्जुन देव जी(1563–1606) ‘आदि ग्रंथ’ का संकलन (1604) एवं श्री हरमंदिर साहिब का निर्माण; सुखमणि साहिब रचना; दान‑दसवंध प्रणाली; पहला शहीद सामाजिक समता, आध्यात्मिक साहित्य का सृजन, धार्मिक स्थिति पर आत्मबलिदान
गुरु हरगोबिंद जी(1595–1644) मिरी‑पिरी सिद्धांत; दो तलवारों का प्रतीक; अकाल तख्त (1608) निर्माण; संगठित सिख सेना‑अकाल सेना स्थापना; चार युद्ध में भाग; कीर्तापुर व हर्गोबिंदपुर की स्थापना धार्मिक एवं सांसारिक सत्ता की संगति; सिखों में आत्मरक्षा और नेतृत्व भावना का विकास
गुरु हर राय जी(1630–1661) शांतिपूर्ण नेतृत्व; धार्मिक शिक्षा‑कीर्तन का प्रचार; रोग‑निवारण (प्राकृतिक चिकित्‍सा); दारा शिकोह को आश्रय; अकबंड‑कीर्तन की शुरुआत मुसलमान‑गंभीर दौर में धर्म‑स्वतंत्रता बनाए रखी; प्राकृतिक चिकित्सा और समुदाय‑सेवा को बढ़ावा
गुरु हर कृष्ण जी(1656–1664) सबसे छोटे समय में गुरुगद्दी प्राप्त; महामारियों में सेवाकार्य (दिल्ली प्लेग) द्वारा करुणा प्रदर्शित; आठ वर्ष की आयु में निधन युवा‑गुरु के रूप में आत्मबलिदान और सामाजिक सेवा की मिसाल
गुरु तेग बहादुर जी(1621–1675) अानंदपुर साहिब की स्थापना; धर्मनिरपेक्षता व धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा हेतु बलिदान; हिन्दू कश्मीरी पंडितों की रक्षा; 116 भजन ग्रंथ में शामिल; दिल्ली में शहीदी मानवाधिकार हेतु आखिरी तक संघर्ष; धर्म‑स्वतंत्रता की सर्वोच्च प्रेरणा
गुरु गोबिंद सिंह जी(1666–1708) खालसा पंथ की स्थापना (1699); पाँच ककार का आयोजन; दसवें मानव गुरु के बाद गुरु ग्रंथ साहिब‑शाश्वत गुरु घोषित; दसम ग्रंथ, जप साहिब, चौपई आदि की रचना; पाँच प्यारे; ‘सिंह’‑‘कौर’ नामकरण; आत्मबलिदान एवं साहस की मिसाल सैनिक‑धार्मिक अनुशासन, सामाजिक न्याय का दृढ़ आधार, गुरु‑शाश्वत ग्रंथ की प्रेरणा

गुरु ग्रंथ साहिब – शाश्वत गुरु

गुरु गोबिंद सिंह जी ने 1708 में घोषणा की कि अब गुरु ग्रंथ साहिब ही स्थायी और शाश्वत गुरु है। सिखों के अनुसार इस पवित्र ग्रंथ में आत्मीय गहरी शिक्षाएँ और जीवन-दर्शन हैं।

  • प्रत्येक गुरु ने पिछले गुरु की शिक्षाओं का विस्तार किया और उन्हें व्यावहारिक रूप में धरातल पर उतारा।
  • इस अनुक्रम में हिस्सेदारी नित्य संबंध से बढ़ती चली गई—प्रथम गुरु से अंतिम मानव गुरु तक—यह प्रेरक रूप से ज्ञान की चोटी तक पहुंचने की यात्रा है।
  • गुरु ग्रंथ साहिब में हर गुरु ने अपना अंश साझा किया है जिसे हर सिख श्रद्धापूर्वक अनुसरण करता है।

भारत में गुरु वो मार्गदर्शक हैं जिन्होंने ज्ञान, धर्म, नीति और नैतिक मूल्यों से मानवता को उन्नत किया। चाहे वेदों, धर्मशास्त्रों के विद्वान हों, राजनैतिक रणनीतिकार या आध्यात्मिक दिग्गज—गुरुओं ने भारतीय संस्कृति को रूप दिया है।

आप इनमें से किसी विशेष गुरु के बारे में और जानना चाहें, तो बताएं!

इस प्रकार, गुरु पूर्णिमा 2025 का पर्व न केवल गुरु-शिष्य परंपरा की महत्ता को रेखांकित करता है, बल्कि यह आत्मविकास, ज्ञान और आध्यात्मिकता की ओर अग्रसर होने का प्रेरणास्रोत भी है।

गुरु पूर्णिमा आत्म-चिंतन, कृतज्ञता और आध्यात्मिक उन्नति का पर्व है। इस दिन अपने गुरुओं का सम्मान करें, उनके प्रति आभार व्यक्त करें और उनके दिखाए मार्ग पर चलने का संकल्प लें। यदि कोई आध्यात्मिक गुरु उपलब्ध न हो, तो भगवान शिव, कृष्ण या हनुमान जी को भी गुरु स्वरूप मानकर साधना की जा सकती है।

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