प्रदोष हिंदू पंचांग के अनुसार प्रत्येक पक्ष की त्रयोदशी तिथि को आने वाला मास में दो बार होने वाला एक विशेष पर्व है। यह पर्व विशेष रूप से भगवान शिव की उपासना से जुड़ा हुआ है। इस दिन सूर्यास्त से लगभग डेढ़ घंटे पहले और सूर्यास्त के डेढ़ घंटे बाद तक का तीन घंटे का समय अत्यंत शुभ माना जाता है और शिव की पूजा के लिए सर्वोत्तम माना गया है। इस अवधि में किए जाने वाले उपवास को प्रदोष व्रत कहा जाता है। प्रदोष के दिन भक्त रुद्राक्ष धारण करते हैं, शरीर पर विभूति लगाते हैं और भगवान शिव का अभिषेक, चंदन अर्पण, बेलपत्र, धूप-दीप तथा नैवेद्य द्वारा श्रद्धापूर्वक पूजन करते हैं। सोम-प्रदोष व्रत वह पर्व है जब भगवान शिव की व्रत-पूजा प्रदोष व्रत के रूप में सोमवार को होती है। आम तौर पर हर माह में प्रदोष तिथि (त्रयोदशी तिथि) शिव पूजा के लिए आती है, लेकिन जब यह तिथि सोमवार के दिन आये तो उसे सोम-प्रदोष कहा जाता है। सोम-प्रदोष व्रत की अगली तिथि सोमवार, 17 नवंबर 2025 को है। भगवान शिव तथा माता पार्वती की विशेष आराधना का समय माना गया है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन व्रत, पूजा-अर्चना, दान-पुण्य आदि करने से जीवन की कष्टें कम होती हैं, मनोकामनाएँ पूरी होती हैं, दांपत्य सुख-समृद्धि मिलती है।
कहा गया है कि इस दिन उपवास, पूजा-अर्चना व कथा श्रवण से पाप नष्ट होते हैं, दांपत्य सुख, परिवार में शांति-समृद्धि आती है, मानसिक उलझनें कम होती हैं तथा शिव की कृपा प्राप्त होती है। वैदिक ज्योतिष के अनुसार, यह व्रत जन्म-कुंडली में चंद्र देव से जुड़े अशुभ योगों को दूर करने में अत्यंत प्रभावी माना जाता है। जब विधि-विधान के साथ यह व्रत किया जाता है, तो भगवान शिव की कृपा से मनोवांछित फल प्राप्त होते हैं। सोम प्रदोष व्रत विशेष रूप से दांपत्य जीवन में प्रेम, सौहार्द और मधुरता बढ़ाने के लिए अत्यंत श्रेष्ठ माना जाता है। इसके अतिरिक्त, यह व्रत मानसिक अशांति, तनाव और मन से जुड़े अन्य समस्याओं को दूर करने में भी सहायक माना जाता है।
शुभ मुहूर्त:
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त्रयोदशी तिथि आरंभ: 17 नवंबर सुबह ~04:46 से।
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त्रयोदशी तिथि समाप्ति: 18 नवंबर सुबह ~07:11 तक।
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प्रदोष काल (पूजा-समय): शाम ~05:27 से रात ~08:06 तक।
पूजा-विधि:
- सुबह की तैयारी
- व्रत वाले दिन सुबह जल्दी उठें। स्नान करें और स्वच्छ, सात्विक वस्त्र पहनें।
- घर के मंदिर (या पूजा स्थान) को साफ रखें और एक चौकी पर लाल या सफेद कपड़ा बिछाएं।
- संकल्प
- शिव-पार्वती या शिवलिंग के सामने संकल्प लें। कुछ स्रोतों में “मम क्षेमस्थैर्य व विजय कामनार्थम् सोम प्रदोष व्रतं करिष्ये” जैसे संकल्प करने का वर्णन है।
- अभिषेक और अर्पण
- शिवलिंग (या शिव-मूर्ति) पर गंगाजल चढ़ाएं।
- इसके बाद दूध, दही, घी, शहद आदि से अभिषेक करें।
- बेलपत्र, सफेद चंदन, फूल (जैसे कनेर), अक्षत (चावल), फल आदि अर्पित करें।
- मंत्र जाप और पूजा
- “ॐ नमः शिवाय” जैसा पंचाक्षर मंत्र जप करें। कुछ स्रोतों में 108 बार जाप करने की सलाह दी गई है।
- महामृत्युंजय मंत्र, या अन्य शिव स्तोत्र / चालीसा भी पाठ कर सकते हैं।
- आरती
- घी या कपूर का दीपक जलाकर आरती करें।
- भोग और दान
- सात्विक भोग (जैसे फल, दूध-मिष्ठान) अर्पित करें।
- व्रत के बाद ब्राह्मणों को दान देना शुभ माना जाता है, जैसे चावल, बेलपत्र, वस्त्र आदि।
- ध्यान और समापन
- पूजा के बाद अपनी गलतियों के लिए शिवजी से क्षमा मांगें और आशीर्वाद लें।
- इस दिन अधिक से अधिक समय शिव की भक्ति और ध्यान में बिताना चाहिए।
सोम प्रदोष व्रतकथा:
बहुत पुरानी बात है; एक नगर में एक ब्राह्मणी रहती थी, लेकिन वह बहुत ही कठिन जीवन जी रही थी। उसके पति का देहांत हो चुका था, इसलिए वह अपने छोटे बेटे के साथ रोज भीख मांगकर जीविकोपार्जन करती थी। ब्राह्मणी की श्रद्धा भगवान शिव के प्रति बहुत गहरी थी। वह हर महीने की त्रयोदशी तिथि पर प्रदोष व्रत रखती थी और घंटे-समय पर पूजा करती थी। एक दिन, जब वह भिक्षा मांगकर लौट रही थी, तो रास्ते में उसे एक घायल युवक मिला, जो कराह रहा था। उसने दया दिखाकर उसे अपने घर ले लिया और उसकी सेवा की। वह युवक कोई साधारण व्यक्ति नहीं था — वह विदर्भ का राजकुमार था, जो शत्रुओं के हमले से भागा हुआ था।
समय के साथ राजकुमार का स्वास्थ्य सुधरा और वह उस ब्राह्मणी व उसके पुत्र के साथ रहने लगा। उसकी बहादुरी और गुण-स्वभाव ने गंधर्व लोक की एक राजकन्या अंशुमति का दिल जीत लिया। अंशुमति ने अपने माता-पिता से कहा कि वह उसी राजकुमार से विवाह करना चाहती है। फिर, गंधर्वराज-रानी को स्वप्न में भगवान शिव ने आदेश दिया कि वे अपनी पुत्री अंशुमति का विवाह उसी राजकुमार से करा दें, क्योंकि वह ब्राह्मणी की भक्ति और प्रदोष व्रत की परंपरा के कारण विशेष पुण्य-योग पर था। उनकी बात मानी गई और विवाह हुआ। इसके बाद राजकुमार ने अपनी शक्ति और गंधर्वों की सेना की मदद से अपने राज्य को पुनः प्राप्त किया और शत्रुओं को पराजित किया।
राजकुमार ने उस ब्राह्मणी और उसके पुत्र का बहुत सम्मान किया — उसका पुत्र उसके राज्य में उच्च पद पर पहुंचा, और ब्राह्मणी को राजमाता जैसा गौरव मिला। यह सब ब्राह्मणी द्वारा किये गए सोम-प्रदोष व्रत और उसकी अटूट श्रद्धा की वजह से संभव हुआ। भगवान शिव ने उसकी भक्ति देखी और कृपा की, इसलिए उसके जीवन के हालात पूरी तरह बदल गए। इसलिए यह माना जाता है कि सोम प्रदोष व्रत करने और उसकी कथा सुनने / पढ़ने से भक्तों को बड़े लाभ मिलते हैं — दैहिक एवं आर्थिक परेशानियाँ दूर होती हैं, सम्मान मिलता है, और मनोकामनाएँ पूरी होती हैं।
सोम-प्रदोष व्रत अत्यन्त पुण्यकारी और शुभ फल देने वाला व्रत माना गया है। जब प्रदोष तिथि सोमवार को आती है, तब शिव-भक्तों के लिए इसका महत्व कई गुना बढ़ जाता है। यह व्रत भगवान शिव और माता पार्वती की कृपा प्राप्त करने का श्रेष्ठ साधन है। शास्त्रों में वर्णित है कि सोम-प्रदोष की उपासना करने से जीवन में आने वाली बाधाएँ दूर होती हैं, कष्टों का निवारण होता है और मनुष्य को मानसिक शांति व स्थिरता प्राप्त होती है। इस दिन प्रदोष-काल में की गई पूजा अत्यंत फलदायी मानी जाती है, क्योंकि यह संध्या का विशेष समय शिव-तत्त्व के अत्याधिक प्रबल होने का काल माना गया है।
इस व्रत के बारे में यह भी कहा गया है कि जो भक्त श्रद्धापूर्वक उपवास रखकर शिव-पूजन करते हैं, उन्हें दीर्घायु, स्वस्थ शरीर, समृद्धि, संतान-सुख, दांपत्य-सुख और शुभ कार्यों में सफलता प्राप्त होती है। विवाह, नौकरी, व्यवसाय और पारिवारिक जीवन से संबंधित रूकावटें भी धीरे-धीरे समाप्त होने लगती हैं। सोम-प्रदोष का विशेष प्रभाव ग्रह-दोषों (विशेषकर चन्द्र दोष) को शांत करने में भी माना गया है। शिवजी की कृपा से मन में शुद्धता, पवित्रता और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
सोम-प्रदोष व्रत वही शुभ अवसर है जब शिव-भक्त पूर्ण भक्ति, निष्ठा और श्रद्धा से प्रभु की आराधना कर अपने जीवन की कठिनाइयों को दूर कर सकते हैं और शांति, आनंद व सफलता की ओर अग्रसर हो सकते हैं।