भौम प्रदोष वह प्रदोष व्रत है जो मंगलवार के दिन पड़ता है। 2025 में दिसंबर महीने का पहला प्रदोष व्रत 2 दिसंबर, मंगलवार को है। ‘भौम’ शब्द मंगल ग्रह का पर्याय है, इसलिए मंगलवार को होने वाला प्रदोष “भौम प्रदोष” कहलाता है। यह व्रत विशेष रूप से भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित है। प्रदोष व्रत हर माह में दो बार त्रयोदशी तिथि पर आता है एक शुक्ल पक्ष में और एक कृष्ण पक्ष में और जब यह तिथि मंगलवार को पड़े, तब इसका महत्व कई गुना बढ़ जाता है। भौम प्रदोष व्रत मुख्यतः भगवान शिव और कई जगहों पर हनुमान जी की उपासना के लिए होता है।
भौम प्रदोष व्रत को शास्त्रों में अत्यंत शक्तिशाली माना गया है, क्योंकि इस दिन शिवजी का विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है। मान्यता है कि भौम प्रदोष का व्रत करने से ऋण, रोग, कष्ट, बाधाएँ, भय, दुर्घटना-संबंधी दोष, मंगल ग्रह की पीड़ा और पारिवारिक संकट दूर होते हैं। यह व्रत व्यक्ति को मानसिक शांति, साहस, सुख-समृद्धि और मनोकामना-पूर्ति प्रदान करता है। प्रदोष काल, जो सूर्यास्त के आसपास का समय होता है, इस व्रत का सबसे शुभ समय माना जाता है। इसी दौरान शिव-पार्वती की पूजा, अभिषेक, मंत्र-जाप और आरती करने से अनेक गुना फल प्राप्त होता है। भौम प्रदोष को संकटों के निवारण, पापों के क्षय और कल्याणकारी फल प्रदान करने वाला अत्यंत शुभ दिन माना गया है। साथ ही, श्रद्धापूर्वक पूजा–अर्चना और कथा-श्रवण से भक्त को ईश्वरीय आशीर्वाद, पापों से मुक्ति, और मनोकामनाओं की पूर्ति का अवसर मिलता है। कहा जाता है कि यह व्रत मंगल दोष (कुंडली में मंगल ग्रह के अशुभ प्रभाव) को शांत करने में सहायक होता है।
हिन्दू ज्योतिष के अनुसार, मंगल ग्रह (भौम) का प्रभाव जीवन में साहस, ऊर्जा, स्वास्थ्य, साहसिक कार्य और वीरता से जुड़ा होता है। यदि मंगल ग्रह कमजोर हो या उसका दुष्प्रभाव हो, तो व्यक्ति को मानसिक तनाव, शारीरिक रोग, अशांति, क्रोध, आर्थिक बाधाएँ या पारिवारिक कलह जैसी समस्याएँ हो सकती हैं। ऐसे में मंगल ग्रह की कृपा प्राप्त करना अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। यदि किसी व्यक्ति पर मंगल का विशेष दोष (मंगल दोष या कुंडली में मंगल की दुष्प्रभाव) हो, तो भौम प्रदोष व्रत, मंगलवार के दिन हनुमान जी के मंदिर में दीप और फल चढ़ाना, गरीबों को लाल रंग के वस्त्र दान करना और ईश्वर की भक्ति करना भौम प्रदोष अत्यंत फलदायी माना गया है। नियमित श्रद्धा, भक्ति और अच्छे कर्म से मंगल ग्रह की कृपा प्राप्त होती है, जिससे जीवन में सफलता, साहस, आत्मविश्वास और मानसिक शांति आती है।
पूजा‑मुहूर्त:
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त्रयोदशी तिथि आरंभ: 02 दिसंबर 2025 को दोपहर 03:57 बजे
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त्रयोदशी तिथि समाप्ति: 03 दिसंबर 2025 दोपहर 12:25 बजे
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प्रदोष काल (पूजा-समय): 02 दिसंबर 2025 शाम 05:33 बजे से 08:15 बजे तक
पूजा‑विधि:
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सुबह स्नान व संकल्प
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व्रत वाले दिन सुबह जल्दी उठें और शुद्ध स्नान करें।
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स्वच्छ व उचित वस्त्र पहनें। फिर मन में व्रत का संकल्प लें कि पूरे दिन व्रत रखेंगे।
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दिन में व्रत रखें
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दिन भर निर्जल व्रत रखना श्रेष्ठ माना जाता है। यदि निर्जल व्रत संभव न हो, तो फलों, दूध या हल्का फलाहार किया जा सकता है।
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इस दौरान तामसिक भोजन (जैसे प्याज़‑लहसुन, मांस, मदिरा आदि) से बचना चाहिए।
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शाम “प्रदोष काल” में पूजा
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सूर्यास्त के बाद, अर्थात् “प्रदोष काल” शाम में पूजा करनी चाहिए। इसे अत्यंत शुभ माना जाता है।
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पूजा स्थान को स्वच्छ करें, मंदिर हो या घर का पूजा कक्ष साफ होने चाहिए। यदि संभव हो, शिवलिंग स्थापित करें; नहीं तो शिव‑मूर्ति या फोटो रख सकते हैं।
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जलाभिषेक और अर्पण
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सबसे पहले शिवलिंग (या शिव मूर्ति) पर गंगाजल / शुद्ध जल से जलाभिषेक करें।
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इसके बाद पंचामृत (दूध, दही/दही‑सादे पदार्थ, घी, शहद/गुल/चीनी, यदि संभव हो) से अभिषेक करना शुभ माना जाता है।
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फिर बेलपत्र (बिल्व पत्र), फूल‑पुष्प, सफेद चंदन, अक्षत, धूप‑अगरबत्ती, दीप (घी‑दीपक) आदि अर्पित करें।
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फल, मिष्ठान, फलों‑व सादे व्यंजन (यदि कोई प्रसाद तैयार करें) वे भी चढ़ाए जा सकते हैं।
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मंत्र जाप और आरती
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पूजा के दौरान या बाद में मंत्र जाप करें, जैसे ॐ नमः शिवाय मंत्र 108 बार, या महामृत्युंजय मंत्र।
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पूजा के अंत में आरती करें। इसके बाद व्रत कथा (यदि आपके पास हो) सुनना या पढ़ना शुभ माना जाता है।
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प्रसाद व व्रत इत्यादि
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पूजा‑अर्चना के बाद यदि व्रत पूरा करना हो, तो हल्का, सात्विक भोजन लें। आमतौर पर तामसिक भोजन (जैसे प्याज़‑लहसुन, मांस, शराब, आदि) से बचना चाहिए।
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दिन भर संयम रखें; क्रोध, झूठ‑बदतमीजी, वर्जित कर्मों से दूर रहें।
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कुछ महत्वपूर्ण बातें / सावधानियाँ
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पूजा के समय “प्रदोष काल” (संध्या / सूर्यास्त के बाद) का ध्यान रखें; यह समय सबसे शुभ माना जाता है।
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पूजा के दौरान तुलसी का पत्ता, केतकी फूल आदि जैसे कुछ विशेष चीजें न दें, क्योंकि जैसी पारंपरिक मान्यताएं बताती हैं।
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यदि आप व्रत करते हैं, तो दिन भर भोजन/वर्जन का ध्यान रखें; व्रत तोड़ने से पहले पूजा करना अनिवार्य है।
भौम प्रदोष व्रत – कथा:
बहुत समय पूर्व की बात है, एक नगर में एक वृद्धा रहती थी। जिसकी एकमात्र संतान अर्थात पुत्र था। वृद्धा को भगवान हनुमान जी से गहरा श्रद्धा‑भक्ति था। वह हर मंगलवार (मंगल‑वार) को यदि वह दिन त्रयोदशी तिथि पर आता था, व्रत रखती थी और हनुमान जी की पूजा‑अर्चना करती थी।
एक बार, वह वृद्धा साधु (संभवतः हनुमान जी के रूप में) के रूप में आए, साधु भूखा था और भोजन माँगा। वृद्धा ने सहज भाव से उसे भोजन कराया, आश्रय दिया, अपना भोजन‑भंडार बांटा। साधु उसकी भक्ति‑श्रद्धा और दानशीलता से प्रभावित हुआ।
कुछ समय बाद, उसी वृद्धा और उसके पुत्र को अनेक प्रकार की कठिनाइयाँ आर्थिक संकट, कर्ज, भय, तनाव घेरने लगीं। परिवार बेचैन और असमंजस में था। तब वृद्धा ने श्रद्धा और विश्वास से “मंगल प्रदोष” अर्थात भौम प्रदोष व्रत रखने का संकल्प लिया। उसने व्रत विधिवत रखा, पूजा‑अर्चना, जल‑अभिषेक, दीप‑दिया, हरी बेलपत्र, फल‑फूल, मंत्र जाप सब सम्पन्न किया।
भगवान भगवान शिव और हनुमान जी (उनकी पूजा व श्रद्धा से) प्रसन्न हुए। धीरे‑धीरे वृद्धा व उसके पुत्र के कष्ट, कर्जा, भय, समस्यायें समाप्त हुईं। आर्थिक हालात सुधरे, परिवार में शांति आई, स्वास्थ्य ठीक हुआ और जीवन में समृद्धि लौट आई।
इस कथा से यह संदेश मिलता है कि जब कोई भक्त भौम प्रदोष व्रत श्रद्धा, निष्ठा, भक्ति और व्रत‑विधि के साथ करता है, तो उसे न केवल शिव व हनुमान की कृपा मिलती है, बल्कि जीवन की चुनौतियाँ, ग्रह‑दोष (विशेषकर मंगल दोष), आर्थिक या पारिवारिक संकट, भय आदि से मुक्ति मिल सकती है।