बुद्धि, वाणी और समृद्धि का सूत्र: बुध प्रदोष व्रत का चमत्कारी प्रभाव

बुध प्रदोष

बुध प्रदोष व्रत, जो 6 अगस्त 2025 को मनाया जाएगा, श्रावण माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को है। यह व्रत हर महीने के दोनों पक्षों में पड़ने वाले त्रयोदशी तिथि को प्रदोष काल के दौरान मनाया जाता हैयह व्रत विशेष रूप से भगवान शिव की आराधना के लिए समर्पित है और बुधवार के दिन होने के कारण इसे “बुध प्रदोष” कहा जाता है। इस दिन भगवान शिव की आराधना और व्रत रखने से सभी प्रकार के कष्ट दूर होते हैं, मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और जीवन में सुख-शांति आती हैयह व्रत विशेष रूप से बुध ग्रह से संबंधित होता है, यह व्रत बुद्धि, वाणी, व्यवसाय, व्यापार और संचार क्षेत्र से जुड़ी समस्याओं को दूर करता है और भगवान शिव की कृपा से सुख-समृद्धि और शांति का मार्ग प्रशस्त होता है। इस दिन व्रत रखने से मानसिक क्षमता में वृद्धि, वाणी में मधुरता और व्यापार में सफलता की प्राप्ति होती है।बुधवार के दिन यह व्रत होने से बुध ग्रह के दोषों का निवारण होता है। 

बुध प्रदोष व्रत (6 अगस्त 2025) – पूजा विधि और शुभ मुहूर्त

शुभ मुहूर्त

  • प्रदोष व्रत तिथि: 6 अगस्त 2025 (बुधवार)
  • त्रयोदशी तिथि प्रारंभ: 6 अगस्त 2025 को सुबह 06:58 बजे
  • त्रयोदशी तिथि समाप्त: 7 अगस्त 2025 को सुबह 04:32 बजे तक
  • प्रदोष काल (पूजा का श्रेष्ठ समय): शाम 06:56 से रात 09:07 तक (स्थानीय समय अनुसार थोड़ी भिन्नता हो सकती है)

बुध प्रदोष व्रत की पूजा विधि:

  1. स्नान एवं संकल्प:

    • प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में उठें और स्नान करें।

    • शुद्ध वस्त्र धारण करें (सफेद या पीले रंग के वस्त्र श्रेष्ठ माने जाते हैं)।

    • घर के पूजा स्थान को स्वच्छ करके गंगाजल छिड़कें।

    • व्रत का संकल्प लें — “मैं आज भगवान शिव की कृपा के लिए प्रदोष व्रत रख रहा/रही हूँ।”

  2. उपवास रखें:

    • दिनभर उपवास रखें: केवल फलाहार या निर्जल व्रत भी रख सकते हैं (स्वास्थ्य अनुसार) या जल ग्रहण करें (सांयकाल के बाद ही कुछ लें)।

    • व्रत के दौरान मन, वाणी और कर्म से पवित्रता बनाए रखें।

    • बार-बार भगवान शिव का नाम जपते रहें — “ॐ नमः शिवाय

  3. शिवलिंग की पूजा (प्रदोष काल में):

    • प्रदोष काल (सूर्यास्त के 45 मिनट बाद का समय) में पूजा करें।

    • शिवलिंग या भगवान शिव की मूर्ति की स्थापना करें।

    • पंचामृत (दूध, दही, शहद, घी, और गंगाजल) से अभिषेक करें।

    • हर अर्पण के समय मंत्र जप करें जैसे “ॐ नमः शिवाय” या महा मृत्युंजय मंत्र
    • बिल्वपत्र, धतूरा, आक, सफेद फूल, चंदन आदि अर्पित करें।

    • दीप, धूप जलाएं और घंटी बजाकर पूजन करें।

    • शिव-पार्वती और नंदी की भी पूजा करें।

  4. मंत्र जप और भजन:

    • “ॐ नमः शिवाय” मंत्र का 108 बार जप करें।

    • शिव तांडव स्तोत्र, प्रदोष व्रत कथा या शिव चालीसा पढ़ें।

    • भजन-कीर्तन करें।

    • यदि संभव हो तो रुद्राभिषेक कराएं, रुद्राभिषेक करते हुए महामृत्युंजय मंत्र, शिवाष्टक आदि मंत्र 108 बार (या जितना संभव हो) जपें या शिव महिम्न स्तोत्र का पाठ करें।

    • साथ ही प्रदोष व्रत कथा पढ़ना या सुनना अत्यंत लाभदायक माना जाता है।
  5. आरती और प्रसाद:

    • संध्या के समय भगवान शिव, माता पार्वती, और नंदी की आरती करें।
    • भोग में पंचामृत, फल, गुड़, या घर में बनी मिठाई अर्पित करें।

    • प्रसाद सभी को बांटें।

  6. व्रत पारण (अगले दिन):

    • अगले दिन प्रातः स्नान कर भगवान शिव की पूजा करें।

    • व्रत का पारण करें – जल, फल, या भोजन लेकर व्रत तोड़ें। पूजा के बाद अगले दिन सरल शाकाहारी भोजन से व्रत खोलें।

    • ब्राह्मण या जरूरतमंद को दान-दक्षिणा, अन्न या वस्त्र दान करें।

बुध प्रदोष व्रत कथा 

व्रत कथा का आरंभ:

पुराणों के अनुसार, प्राचीन काल में एक नगर में एक निर्धन ब्राह्मण परिवार रहता था। उस परिवार का एकमात्र पुत्र बहुत ही धार्मिक और संस्कारी था। वह अपने माता-पिता की आज्ञा का पालन करता और हर रोज़ भगवान शिव की पूजा करता था। लेकिन अत्यंत निर्धनता के कारण परिवार को भोजन के लिए भी संघर्ष करना पड़ता था।

एक दिन वह बालक वन में लकड़ी बीनने गया। रास्ते में उसने एक साधु को देखा जो ध्यानमग्न अवस्था में बैठे थे। वह बालक उनके पास गया और उन्हें प्रणाम कर पूछा — “भगवन, कृपया मुझे ऐसा उपाय बताइए जिससे मेरा जीवन सुखी हो जाए और मेरे माता-पिता को कष्ट न हो।”

साधु का उत्तर और प्रदोष व्रत का महत्व:

साधु ने अपनी आंखें खोलीं और कहा:
“वत्स, तुम्हारे जीवन के कष्टों का निवारण केवल भगवान शिव की कृपा से संभव है। तुम प्रदोष व्रत, विशेषकर बुधवार के दिन पड़ने वाले प्रदोष व्रत (बुध प्रदोष) को पूरे श्रद्धा और नियम से करो। भगवान शिव स्वयं तुम्हारे संकटों को हर लेंगे।”

बालक ने उस दिन से प्रतिवर्ष बुध प्रदोष व्रत करना प्रारंभ कर दिया। वह विधिपूर्वक उपवास रखता, शिवलिंग का पूजन करता और बेलपत्र, धतूरा, चंदन, धूप-दीप अर्पित करता। कुछ ही समय में उसकी स्थिति बदलने लगी। उसके घर में अन्न, धन और सुख-शांति का आगमन हुआ। नगरवासी भी उसकी भक्ति से प्रभावित हो गए।

कथा का फल और संदेश:

भगवान शिव उसकी निष्ठा से प्रसन्न हुए और वरदान दिया —
“वत्स, तुमने जिस श्रद्धा और नियम से प्रदोष व्रत किया है, उससे न केवल तुम्हारा बल्कि जो भी श्रद्धापूर्वक इस व्रत को करेगा, उसका जीवन संकटमुक्त और सुखमय होगा।”

इस कथा से यह सिद्ध होता है कि जो भी भक्त प्रदोष व्रत विशेष रूप से बुधवार के दिन करता है, उसे बुद्धि, व्यापार, संतान, सुख और स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। साथ ही, बुध ग्रह के दोष समाप्त होते हैं।

विशेष सुझाव:

  • यदि संभव हो तो शिव मंदिर जाएं और रात्रि जागरण करें।

  • व्रत के दौरान क्रोध, झूठ, कटु वचन और मांसाहार से बचें।

  • यह व्रत शिव कृपा, बुध ग्रह की शांति, और पारिवारिक सुख के लिए अत्यंत फलदायी है।

विशेष ध्यान देने योग्य बातें:

  • यह व्रत बुध ग्रह (Mercury) से संबंधित होता है। अतः छात्रों, शिक्षकों, लेखकों, व्यापारियों तथा संवाद से जुड़े लोगों  यानी वे सभी जो अपनी वाणी, बुद्धि और अभिव्यक्ति क्षमता को बेहतर बनाना चाहते हैं। उनके लिए यह व्रत अत्यंत लाभकारी होता है।

  • त्रयोदशी तिथि और प्रदोष काल का संयोग इस व्रत की पूजा के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है। यदि पूजा इस विशेष प्रदोष काल में की जाए, तो उसका फल कई गुना बढ़ जाता है। वहीं, यदि पूजा इस शुभ काल के बाहर की जाए तो उसका प्रभाव अपेक्षाकृत कम हो सकता है।

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