कल यानी 23 जुलाई 2025 (बुधवार) को सावन मास (श्रावण मास) की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी होगी, जिसे सावन शिवरात्रि कहा जाता है। यह पावन पर्व रातभर जागरण, पूजा-व्रत, और शिवलिंग पर गंगाजल, दूध, दही, पंचामृत और बेलपत्र अर्पित करके मनाया जाता है। इस दिन भक्त दिन भर निर्जला या फल,दूध का सेवन कर के व्रत रखते हैं और मध्यरात्रि के दौरान विशेषतः Nishita Kaal (12:07 AM से 12:48 AM तक) पूजा और मंत्रजाप पर ध्यान केंद्रित करते हैं Drik Panchang+3Myholidays.com+3Astroyogi+3। व्रत का पारण सुबह 5:38–5:59 AM के बीच किया जाएगा, जो कि चतुर्दशी तिथि समाप्ति से पहले है।
चार प्रहरों में अनुष्ठान
पूजा रात को चार भागों (प्रहरों) में होती है:
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पहला प्रहर: 7:17 PM – 9:53 PM
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दूसरा प्रहर: 9:53 PM – 12:28 AM
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तीसरा प्रहर: 12:28 AM – 3:03 AM
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चौथा प्रहर: 3:03 AM – 5:38 AM या 5:47 AM
पक्ष | विवरण |
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दिनांक | 23 जुलाई 2025 (बुधवार) |
चतुर्दशी तिथि | 4:39 AM (23 जुलाई) – 2:28 AM (24 जुलाई) |
निशीथ काल | 12:07 – 12:48 AM |
पारणा समय | 5:38 – 5:59 AM (24 जुलाई) |
भद्रा अवधि | 5:37 AM – 3:31 PM (23 जुलाई) |
उपवास | 23 जुलाई (पूरे दिन) – पारणा 24 जुलाई सुबह |
पूजा-अर्चना और रात्रि जागरण:
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श्रद्धालु ग्रहण तोड़ने के लिए पारण 24 जुलाई की सुबह 5:38–5:59 बजे तक करते हैं।
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रात्रि चार पहरों में शिवलिंग पर जल, दूध, दही, घी, शहद तथा गंगाजल से रुद्राभिषेक करें, प्रत्येक पहर अलग मंत्र, फूल और भोग अर्पित करें—इससे जीवन से बाधाएँ दूर होती हैं, मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
भद्रा का समय एवं बचाव:
23 जुलाई को सुबह 5:37 बजे से दोपहर 3:31 बजे तक भद्राकाल रहेगा—यह समय शुभ कार्यों के लिए उत्तम नहीं माना जाता, इसलिए जलाभिषेक जैसे कर्म इससे पहले ब्रह्म मुहूर्त (सुबह 4:15–4:56 बजे) में कर लेने की सलाह दी जाती है।
इस वर्ष की सावन शिवरात्रि पर तीन दुर्लभ राजयोग गजकेसरी, मालव्य और बुद्धादित्य का अद्भुत संगम हो रहा है। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, इन योगों का प्रभाव विशेष रूप से वृषभ, मिथुन, कर्क, वृश्चिक और धनु राशि वालों के लिए अत्यंत शुभ माना जा रहा है। ऐसा दुर्लभ ज्योतिषीय संयोग पिछली बार वर्ष 2001 में देखा गया था।
पौराणिक महत्त्व:
कहा जाता है कि इस दिन देवी पार्वती ने कठोर तपस्या के बाद शिवजी को प्राप्त किया था, यह पर्व भगवान शिव और माता पार्वती के दिव्य मिलन तथा समुद्र मंथन से निकले विष का शिव द्वारा ग्रहण करने की महागाथा से जुड़ा हुआ है। जिसके बाद देवताओं ने उनकी आरती कर विष की तीव्रता को शांत किया। इस शिवरात्रि को सावन मास की मासिक शिवरात्रियों में सबसे विशेष माना जाता है, क्योंकि इस समय श्रवण मास का आध्यात्मिक और ज्योतिषीय प्रभाव बहुत अधिक होता है।
सावन शिवरात्रि का धार्मिक महत्व बहुत गहरा और विशेष है। यह दिन भगवान शिव की उपासना का पवित्र अवसर माना जाता है, क्योंकि सावन मास को शिवजी का प्रिय महीना कहा गया है। इस दिन भगवान शिव ने समुद्र मंथन के दौरान उत्पन्न हुए विष (हलाहल) का सेवन किया था, जिससे उनकी गर्दन नीली पड़ गई और उन्हें ‘नीलकंठ’ की उपाधि मिली। इसलिए सावन शिवरात्रि को विष को सहने वाले शिवजी की भक्ति और बलिदान का स्मरण माना जाता है।
इस दिन शिवलिंग पर जल, दूध, गंगा जल, शहद और बेलपत्र चढ़ाने से सारे पाप धुल जाते हैं और भक्तों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। सावन शिवरात्रि का व्रत रखने से मानसिक शांति, आध्यात्मिक उन्नति, और जीवन में समृद्धि आती है। इसे भगवान शिव की कृपा पाने और जीवन की कठिनाइयों से मुक्ति का दिन माना जाता है। साथ ही, इस दिन की पूजा से स्वास्थ्य लाभ, सुख-समृद्धि, परिवार की खुशहाली और संकटों से रक्षा होती है।
अतः सावन शिवरात्रि को भगवान शिव की सबसे महत्वपूर्ण और शुभ पूजा का दिन माना जाता है, जो भक्तों के जीवन में नए ऊर्जा, आध्यात्मिक जागरूकता और सकारात्मक परिवर्तन लेकर आता है।
सावन शिवरात्रि की पूजा विधि:
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स्नान और शुद्धि: सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्वच्छ जल से स्नान करें। इसके बाद साफ कपड़े पहनें।
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पूजा स्थल की तैयारी: शिवलिंग की सफाई करें और उसे साफ कपड़े या फूलों से सजाएं। पूजा स्थल को धूप, दीप और लौंग से सजाएं।
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शिवलिंग पर अभिषेक:
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शिवलिंग पर जल, दूध, दही, शहद, घी और गंगाजल चढ़ाएं।
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इसके बाद बेलपत्र, फूल, धतूरा, चंदन, अक्षत (चावल), और गुड़ अर्पित करें।
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मंत्र जाप:
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“ॐ नमः शिवाय” मंत्र का कम से कम 108 बार जाप करें।
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यदि संभव हो तो पूरे दिन रात्रि जागरण करें और भजन-कीर्तन में भाग लें।
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विशेष पूजा काल:
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निशिता काल (रात्रि 12:00 बजे से 1:00 बजे के बीच) में विशेष पूजा और जलाभिषेक करें, क्योंकि यह काल अत्यंत शुभ माना जाता है।
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व्रत पालन:
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दिनभर व्रत रखें और सात्विक भोजन करें।
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शाम को भगवान शिव की आरती करें और अपनी मनोकामनाएं प्रार्थना स्वरूप मांगे।
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दान और सेवा:
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इस दिन जरूरतमंदों को दान दें, जैसे खाद्य सामग्री, वस्त्र या धन।
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मंदिरों में सेवा करना भी फलदायी माना जाता है।
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यह पूजा विधि सावन शिवरात्रि के दिन भगवान शिव की कृपा पाने और आध्यात्मिक उन्नति के लिए अत्यंत लाभदायक मानी जाती है।
सावन शिवरात्रि की व्रत कथा:
प्राचीनकाल में एक ब्राह्मण रहता था, जो अत्यंत धर्मात्मा और भगवद्भक्त था। एक बार उसने अपनी श्रद्धा और भक्ति से भगवान शिव को प्रसन्न करने का संकल्प लिया और सावन मास की शिवरात्रि का व्रत रखा। उस वर्ष सावन शिवरात्रि पर उसने पूरे मन और श्रद्धा से पूजा-अर्चना की, शिवलिंग का अभिषेक किया, और ‘ॐ नमः शिवाय’ का जाप किया।
उस ब्राह्मण की भक्ति से खुश होकर भगवान शिव प्रकट हुए और उन्हें आशीर्वाद दिया कि जो कोई भी सावन शिवरात्रि का व्रत विधिपूर्वक रखेगा और श्रद्धा से पूजा करेगा, उसके सभी कष्ट दूर होंगे, पाप नष्ट होंगे और वह जीवन में सुख, समृद्धि और मोक्ष प्राप्त करेगा।
कथा के अनुसार, सावन शिवरात्रि का व्रत रखने से भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्त होती है और भक्तों के जीवन में नयी ऊर्जा, सकारात्मकता और आध्यात्मिक उन्नति होती है। इस व्रत को रखने से व्यक्ति के जीवन में आने वाली सभी बाधाएं दूर हो जाती हैं और उसे स्वास्थ्य, संपत्ति और परिवार की खुशहाली मिलती है।
इसलिए सावन शिवरात्रि का व्रत अत्यंत फलदायी माना जाता है और इसे भक्तिभाव से करने का आशीर्वाद पुराणों में भी दिया गया है। भक्तों को यह व्रत अवश्य रखना चाहिए ताकि उन्हें भगवान शिव की अनंत कृपा प्राप्त हो सके।
सूचना:
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कई उत्तर भारत के राज्यों में, जहाँ कांवड़ यात्रा (Kanwar Yatra) प्रचलित है, राज्य कर्मचारी–स्कूल आदि अवकाश पर रह सकते हैं
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हालांकि बैंक ऑफ इंडिया ने इसे राष्ट्रव्यापी बैंक हॉलिडे नहीं रखा है; इसलिए बैंक सामान्य रूप से खुले रहेंगे (ऑनलाइन सेवाएँ जारी रहेंगी)।
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उत्तर भारत में सावन शिवरात्रि के पश्चात स्कूल–सरकारी कार्यालयों में अवकाश हो सकता है, लेकिन RBI के अनुसार बैंकों में छुट्टी नहीं होगी; फिजिकल बैंकों की असुविधा हो सकती है, जबकि ऑनलाइन बैंकिंग सेवाएँ 24×7 उपलब्ध रहेंगी।