इस दीपावली को अंधकार पर प्रकाश की विजय, लक्ष्मी पूजन, दीपदान और भक्ति से जगमगाते पर्व का भव्य उत्सव

20 अक्टूबर 2025, सोमवार को पूरे भारत में दीपावली या लक्ष्मी पूजा का पावन पर्व हर्षोल्लास के साथ मनाया जाएगा। यह पर्व कार्तिक मास की अमावस्या तिथि को आता है, जिसे वर्ष का सबसे शुभ और प्रकाशमय दिन माना जाता है। दिवाली के दिन माता लक्ष्मी, भगवान गणेश, और धन के देवता कुबेर की पूजा का विशेष विधान है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन माता लक्ष्मी घर में सुख-समृद्धि का वास करती हैं और अंधकार पर प्रकाश, अधर्म पर धर्म तथा अज्ञान पर ज्ञान की विजय होती है। इस अवधि में दीप जलाना, लक्ष्मी-गणेश की मूर्तियों की स्थापना करना, चांदी के सिक्कों की पूजा और धन के लेखा-जोखा की पुस्तिकाओं का पूजन शुभ माना जाता है। घरों, मंदिरों और बाजारों को दीपों और रंगोली से सजाया जाएगा। रात को पटाखों की गूंज, मिठाइयों की खुशबू और दीपों की जगमगाहट से पूरा वातावरण भक्तिमय और उत्साहपूर्ण रहेगा। इस दिन भगवान राम के अयोध्या आगमन, माता लक्ष्मी की समुद्र मंथन से उत्पत्ति, और बलि प्रतिपदा से जुड़े धार्मिक प्रसंगों का स्मरण किया जाता है। यह दिन धन, सौभाग्य, स्वास्थ्य और शांति का प्रतीक है। दिवाली केवल एक धार्मिक पर्व नहीं बल्कि प्रकाश, सत्य, समृद्धि और मानवता के उत्थान का प्रतीक है। यह दिन हमें सिखाता है कि जीवन में चाहे कितनी भी अंधकारमय परिस्थितियाँ हों, ज्ञान, श्रद्धा और धर्म से प्रकाश फैलाया जा सकता है।

दीपावली का पर्व भारतीय संस्कृति का सबसे प्राचीन और महान उत्सव है, जिसकी अनेक पौराणिक कथाएँ प्रचलित हैं। हर कथा इस दिन के महत्व, धर्म, सत्य और प्रकाश की विजय का प्रतीक मानी जाती है। कहा जाता है कि भगवान श्रीराम ने लंका पर विजय प्राप्त कर रावण का वध किया और माता सीता व भ्राता लक्ष्मण के साथ 14 वर्ष का वनवास पूर्ण करने के बाद अयोध्या लौटे। उनके आगमन की खुशी में अयोध्यावासियों ने नगर को दीपों से सजाया और घर-घर दीप प्रज्वलित किए। तभी से यह दिन “अंधकार पर प्रकाश और असत्य पर सत्य की विजय” के प्रतीक के रूप में दीपावली कहलाया।

इसी तरह एक अन्य कथा के अनुसार, समुद्र मंथन के समय जब देवताओं और असुरों ने क्षीरसागर का मंथन किया, तब अनेक दिव्य रत्नों के साथ माता लक्ष्मी प्रकट हुईं। वे अपने हाथों में कमल लिए प्रकट हुईं और भगवान विष्णु को अपने वर के रूप में चुना। इसीलिए कार्तिक अमावस्या की रात को माता लक्ष्मी की पूजा करने की परंपरा प्रारंभ हुई। ऐसा माना जाता है कि जो भक्त सच्चे मन से लक्ष्मी पूजन करता है, उसके घर में धन, सौभाग्य और समृद्धि का वास होता है।

इसके अतिरिक्त, एक और प्रसिद्ध कथा के अनुसार भगवान विष्णु ने वामन अवतार धारण कर असुरराज बलि से पृथ्वी का अधिकार लेकर देवताओं को स्वर्ग पुनः दिलाया। भगवान विष्णु ने राजा बलि को पाताल लोक में स्थान दिया और उन्हें प्रतिवर्ष कार्तिक अमावस्या के दिन दर्शन देने का वर प्रदान किया। इसी कारण दीपावली के अगले दिन गोवर्धन पूजा और बलि प्रतिपदा मनाई जाती है। इस प्रकार, दीपावली केवल एक धार्मिक पर्व नहीं बल्कि यह सदाचार, ज्ञान और प्रकाश की विजय का शाश्वत प्रतीक है।

दीपावली का शुभ मुहूर्त:

लक्ष्मी पूजा मुहूर्त: शाम 5:39 बजे से रात 8:11 बजे तक

प्रदोष काल: शाम 5:33 बजे से रात 8:11 बजे तक

अमावस्या तिथि प्रारंभ: 20 अक्टूबर 2025 को शाम 3:44 बजे

अमावस्या तिथि समाप्त: 21 अक्टूबर 2025 को शाम 5:54 बजे

पूजा का सर्वोत्तम समय: लक्ष्मी पूजा प्रदोष काल में की जानी चाहिए, जब स्थिर लग्न हो (इस वर्ष वृषभ लग्न में पूजा अत्यंत शुभ है, जो लगभग शाम 5:45 बजे से 7:40 बजे तक रहेगा)। इस मुहूर्त में माँ लक्ष्मी, भगवान गणेश और कुबेर जी की संयुक्त आराधना से घर में धन, समृद्धि और शांति का आगमन होता है।

दीपावली /लक्ष्मी पूजा की पूजा विधि:

1. तैयारी और घर की शुद्धि

  • सुबह स्नान के बाद घर, आंगन और पूजा स्थान की सफाई करें।

  • दरवाज़े और मुख्य द्वार पर तोरण, आम या अशोक के पत्तों की सजावट करें।

  • पूरे घर में गोबर या गेरू से रंगोली बनाएं और दीपक सजाएं।

  • घर के सभी कोनों में दीप जलाने का संकल्प करें — इसे “अंधकार पर प्रकाश की विजय” माना जाता है।

2. पूजा सामग्री (आवश्यक वस्तुएँ)

  • लक्ष्मी-गणेश की मूर्तियाँ

  • एक चौकी या पूजा स्थान

  • लाल या पीला कपड़ा

  • फूल (कमल या गुलाब), हल्दी, कुंकुम, अक्षत (चावल)

  • दीपक, घी या तेल

  • अगरबत्ती, कपूर

  • पान, सुपारी, इलायची, लौंग

  • नारियल, फल, मिठाई (विशेषतः खील-बताशे)

  • चांदी या तांबे के सिक्के

  • कलश (जल, सुपारी, आम पत्र और नारियल सहित)

3. पूजा विधि

  1. प्रदोष काल में (शाम 5:39 बजे से रात 7:43 बजे तक) पूजा आरंभ करें।

  2. पूजा स्थल पर लाल या पीले वस्त्र बिछाकर मूर्तियाँ स्थापित करें।

  3. कलश स्थापित करें और उसमें जल, सुपारी, अक्षत, आम पत्र और नारियल रखें।

  4. गणेश जी की पूजा पहले करें — उन्हें मोदक और दूर्वा अर्पित करें।

  5. इसके बाद माता लक्ष्मी का पूजन करें —

    • उनके चरणों में पुष्प अर्पित करें।

    • तेल या घी के दीप जलाएं।

    • “ॐ श्रीं महालक्ष्म्यै नमः” मंत्र का जाप करें।

  6. फिर कुबेर जी की पूजा करें, चांदी या सोने के सिक्कों को लक्ष्मी जी के चरणों में रखें।

  7. खाता-बही (बहीखाता) और व्यापारिक पुस्तिकाओं की पूजा करें।

  8. अंत में आरती करें — “जय लक्ष्मी माता” और “जय गणेश देवा” की आरती से पूजा संपन्न करें।

4. दीपदान और पूजन पश्चात कर्म

  • घर के हर कोने, विशेषकर मुख्य द्वार, तुलसी चौरा, रसोई और तिजोरी के पास दीप जलाएं।

  • घर के बाहर यमदीप जलाकर पितरों और यमराज की कृपा प्राप्त करें।

  • परिवार के सभी सदस्य एक साथ दीप जलाएं और मिठाई बांटें।

वाराणसी में दीपावली का भव्य उत्सव

वाराणसी में गंगा तट पर होने वाला “देव दीपावली पूर्वोत्सव” का आरंभ कल से ही दीप सज्जा और आरती के साथ होगा। घाटों पर हजारों दीये जलाकर गंगा आरती की मनोहर झांकी बनाई जाएगी। संकटमोचन, काशी विश्वनाथ और अन्नपूर्णा मंदिरों में विशेष लक्ष्मी-गणेश पूजा और अखंड दीप प्रज्वलन किया जाएगा। पूरा शहर रोशनी और पुष्पों से सजा होगा, जिससे काशी “प्रकाश की नगरी” बन जाएगी।

सोमवार को पवित्र नगरी वाराणसी (काशी) में दीपावली का भव्य और दिव्य उत्सव मनाया जाएगा। इस दिन पूरे शहर में धर्म, संस्कृति और भक्ति का अद्भुत संगम देखने को मिलेगा। काशी, जिसे “प्रकाश की नगरी” कहा जाता है, दीपों की रौशनी से दैदीप्यमान होगी।

गंगा तट पर स्थित दशाश्वमेध, राजेन्द्र प्रसाद, अस्सी, पंचगंगा और भैंसासुर घाटों पर हजारों दीयों से सजे घाटों का दृश्य मन मोह लेगा। शाम को गंगा आरती के समय पूरा वातावरण “हर-हर गंगे” के जयघोष और मंत्रोच्चार से गूंज उठेगा। भक्तजन दीपदान करेंगे और मां गंगा से सुख-समृद्धि और शांति की कामना करेंगे।

काशी विश्वनाथ मंदिर में भी दिवाली के अवसर पर विशेष लक्ष्मी-गणेश पूजन और महाआरती का आयोजन किया जाएगा। मंदिर परिसर को फूलों, झालरों और विद्युत लाइटों से सजाया गया है। श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ने की संभावना है, इसलिए प्रशासन ने सुरक्षा और दर्शन व्यवस्था के विशेष प्रबंध किए हैं। इसके अलावा, संकटमोचन हनुमान मंदिर और अन्नपूर्णा देवी मंदिर में भी दिवाली पर विशेष पूजा, भजन संध्या और दीप प्रज्वलन का कार्यक्रम होगा। कई स्थानों पर रामलीला और सांस्कृतिक झांकियाँ भी प्रस्तुत की जाएँगी।

वाराणसी की गलियाँ, बाजार और घाटों पर दीपों की पंक्तियाँ, पुष्प सजावट, रंगोली और मिठाइयों की सुगंध एक अलौकिक दृश्य प्रस्तुत करेंगी। भक्त गंगा तट पर परिवार सहित दीप जलाकर अपने पितरों और देवताओं को स्मरण करेंगे। इस प्रकार, कल की दीपावली में काशी नगरी का हर कोना भक्तिभाव, प्रकाश और उल्लास से आलोकित होगा। जहाँ अंधकार पर प्रकाश की विजय का यह पर्व माँ गंगा की गोद में अपनी दिव्यता का साक्षी बनेगा।

श्रीराम की नगरी में मनाया जाएगा भव्य दिवाली उत्सव

भगवान श्रीराम की नगरी अयोध्या में दीपावली का पर्व अत्यंत भव्य और ऐतिहासिक रूप से मनाया जाएगा। यह दिवाली अयोध्या के गौरव, आस्था और रामभक्ति का सबसे बड़ा प्रतीक बन चुकी है। इस वर्ष भी “दीपोत्सव 2025” का आयोजन अभूतपूर्व स्तर पर होने जा रहा है, जिसके तहत सरयू नदी के घाटों पर 24 लाख से अधिक दीपों को एक साथ जलाने का लक्ष्य रखा गया है — जिससे एक नया गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड बनने की संभावना है।

शाम होते ही राम जन्मभूमि परिसर, हनुमानगढ़ी, कनक भवन, नागेश्वरनाथ मंदिर, और सरयू घाट को फूलों, रंग-बिरंगी लाइटों और मिट्टी के दीयों से सजाया जाएगा। जैसे ही सूर्य अस्त होगा, सरयू तट पर आरती आरंभ होगी, जहाँ हजारों भक्त “जय श्रीराम” के जयघोष के साथ दीप जलाएंगे। इस समय पूरा अयोध्या नगर सुनहरी रोशनी से नहाया हुआ प्रतीत होगा, मानो स्वर्ग स्वयं धरती पर उतर आया हो।

मुख्य आकर्षण के रूप में —

  • रामलीला मंचन, जिसमें भगवान श्रीराम के वनवास से अयोध्या लौटने की कथा का सजीव चित्रण होगा।

  • राम दरबार झांकी और सांस्कृतिक प्रस्तुतियाँ (लोकनृत्य, भजन, संकीर्तन)।

  • मुख्यमंत्री और राज्यपाल की उपस्थिति में दीप प्रज्वलन समारोह

  • ड्रोन शो, जिसमें आकाश में भगवान श्रीराम की लंका विजय और अयोध्या आगमन का दृश्य प्रदर्शित किया जाएगा।

सुरक्षा की दृष्टि से पूरे अयोध्या में व्यापक इंतज़ाम किए गए हैं, लगभग 10,000 से अधिक सुरक्षा कर्मी तैनात रहेंगे। प्रशासन ने विशेष यातायात व्यवस्था और श्रद्धालुओं के लिए निःशुल्क बस सेवा की भी घोषणा की है।

अयोध्या की यह दिवाली केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि रामराज्य की भावना, भक्ति की अनुभूति, और प्रकाश की विजय का उत्सव बन चुकी है। जब लाखों दीप एक साथ जलेंगे, तो अयोध्या का हर कोना भगवान श्रीराम के आगमन की स्मृति में आलोकित हो उठेगा।

उज्जैन में दीपावली में महाकालेश्वर मंदिर में भव्य पूजा और दिव्य सज्जा

उज्जैन में महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर में विशेष लक्ष्मी पूजन और महाआरती होगी। शाम को मंदिर प्रांगण और शिप्रा नदी के घाटों पर हजारों दीप जलाकर देवताओं का आह्वान किया जाएगा। उज्जैन की दिवाली शिव और शक्ति के संयुक्त पूजन के लिए जानी जाती है, जहाँ भक्त धन, स्वास्थ्य और आध्यात्मिक उन्नति की प्रार्थना करते हैं। उज्जैन में दीपावली का पर्व श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाया जाएगा। इस दिन महाकालेश्वर मंदिर में विशेष पूजा-अर्चना, 56 भोग, दीपदान और रात्रि आरती का आयोजन होगा। मंदिर परिसर को दीपों और विद्युत सज्जा से सजाया जाएगा, जिससे समूचा वातावरण दिव्य आभा से प्रकाशित होगा।

विशेष रूप से, इस वर्ष महाकाल मंदिर में आतिशबाजी पर पूर्ण प्रतिबंध रहेगा। केवल एक फुलझड़ी जलाने की अनुमति होगी, ताकि पारंपरिक मर्यादाओं और सुरक्षा मानकों का पालन किया जा सके।इसके अतिरिक्त, उज्जैन के बाजारों में दीपावली की खरीदारी जोरों पर है, जहां मिठाइयाँ, दीप, रंग-बिरंगे कपड़े, सजावट की सामग्री और नए बही-खातों की खरीदारी की जा रही है।

पंचांग के अनुसार, इस दिन हंस महापुरुष, बुधादित्य और कलात्मक योग का विशेष संयोग बन रहा है, जो लक्ष्मी पूजन के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है। स्थिर लग्न में पूजन करने से घर में सुख, समृद्धि और लक्ष्मी का वास होता है। इस प्रकार, उज्जैन में कल की दीपावली न केवल धार्मिक अनुष्ठानों का पर्व होगी, बल्कि यह शहर की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक धरोहर का भी प्रतीक बनेगी।

मथुरा और वृंदावन में दिवाली का उत्सव

वहीं मथुरा और वृंदावन में दिवाली का पर्व श्रीकृष्ण की लीलाओं के रूप में मनाया जाएगा। द्वारकाधीश मंदिर, बाँके बिहारी मंदिर और गोवर्धन क्षेत्र में दीपदान, गोवर्धन पूजा और संकीर्तन का आयोजन होगा। ब्रजभूमि दीपों से जगमगाएगी और भक्त “जय श्रीकृष्ण” के जयघोष के साथ पूजा-अर्चना में लीन रहेंगे। सोमवार को मथुरा और वृंदावन में दीपावली का भव्य और भक्ति‑पूर्ण उत्सव मनाया जाएगा। यह क्षेत्र भगवान कृष्ण की लीलाओं से जुड़ा होने के कारण दिवाली के समय विशेष आकर्षण का केंद्र बन जाता है। पूरे नगर में दीपों और रंगोली से सजावट की जाएगी, मंदिरों और गलियों में हर ओर प्रकाश और उल्लास का वातावरण रहेगा।

वृंदावन में बाँके बिहारी मंदिर, राधा रानी मंदिर और अन्य प्रमुख मंदिरों में विशेष लक्ष्मी-गणेश पूजा और दीपदान आयोजित किया जाएगा। भक्तगण सुबह से लेकर रात्रि तक मंदिरों में कीर्तन, भजन और आरती में भाग लेंगे। शाम के समय हजारों दीप जलाकर गोपियों और कृष्ण की लीलाओं का स्मरण किया जाएगा।

मथुरा में भी श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर और अन्य पवित्र स्थलों पर विशेष सजावट की गई है। नगरवासियों और तीर्थयात्रियों के लिए दीपमालाएँ सजाई गई हैं, और घाटों पर दीपों की कतारों से पूरा शहर जगमगाएगा। लोग इस अवसर पर मिठाइयाँ बांटेंगे, पारंपरिक खेलों और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में हिस्सा लेंगे, और पर्यावरण‑सुरक्षित पटाखों का प्रयोग करेंगे।इस प्रकार, मथुरा और वृंदावन में कल की दिवाली केवल एक धार्मिक उत्सव नहीं बल्कि भक्ति, संस्कृति और आनंद का अद्भुत संगम बनकर मनाई जाएगी, जहाँ लाखों दीपों की रोशनी से नगर आभायुक्त और पवित्र दिखाई देगा।

इस साल कई बड़े शहरों में सार्वजनिक आयोजनों और आधुनिक कार्यक्रमों की भी खबरें आ रही हैं। उदाहरण के लिए दिल्ली में कार्तव्य पथ पर रामायण-थीम वाला ड्रोन शो और बड़े दीपदान की प्रस्तुतियां हुईं, जबकि इंदौर-पैमानों पर दीवाली बाद की सफाई और फायरक्रैकर-कचरे के सुरक्षित निपटान के विशेष अभियान सक्रिय किए गए हैं। ये हालिया प्रशासनिक कदम भी त्योहार के समारोह और सुरक्षा/पर्यावरण दोनों पहलुओं को दर्शाते हैं।

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