हरियाणा के भिवानी जिले में 19 वर्षीय शिक्षिका मनीषा की संदिग्ध मृत्यु का मामला राज्यभर में आक्रोश का कारण बना हुआ है। यह केस हरियाणा के भिवानी डिस्ट्रिक्ट में लोहारू के धानी लक्ष्मण गांव का है। 11 अगस्त 2025 को लापता हुई मनीषा का शव 13 अगस्त को एक खेत में मिला। शुरुआती जांच में पुलिस ने इसे आत्महत्या का मामला बताया, जिसमें एक कथित सुसाइड नोट और कीटनाशक खरीदने के प्रमाण प्रस्तुत किए गए। हालांकि, पोस्टमार्टम रिपोर्ट में बलात्कार की संभावना से इनकार किया गया है।
19-वर्षीय शिक्षक मनीषा 11 अगस्त 2025 को स्कूल से निकलीं और दोपहर 1:58 पर कॉलेज फॉर्म लेने गईं। यही उनका आखिरी दृश्य CCTV फुटेज में दर्ज है। शाम तक न लौटने पर उनके पिता ने Missing रिपोर्ट दर्ज करवाई। 13 अगस्त को उनका शरीर सिंघाणी गांव के एक खेत में गर्दन कटे अवस्था में पाया गया। पुलिस ने पहले हत्या की आशंका जताई, फिर आत्महत्या का नाटक किया। सुसाइड नोट, कीटनाशक की खरीद और विष के प्रमाण दिए। इसका विरोध परिवार और ग्रामीणों ने शांतिपूर्ण प्रदर्शन, डायम्कनी, सड़क जाम व महापंचायतों के जरिए किया। इंटरनेट बंदी, पुलिस अधिकारियों का निलंबन और SP का ट्रांसफर हुआ। अंततः सरकार ने जांच CBI को सौंप कर तीसरी पोस्ट-मॉर्टेम AIIMS भेजी, और 21 अगस्त को हजारों की मौजूदगी में अंतिम संस्कार हुआ।
मनीषा केस: इंसाफ की तलाश और जांच में गड़बड़ियों की लंबी कहानी
11 अगस्त: गुमशुदगी की शुरुआत, पुलिस का ढीला रवैया
11 अगस्त को मनीषा रोज़ की तरह किड्स केयर बाल विद्यालय पढ़ाने के लिए घर से निकली, लेकिन वापस नहीं लौटी। पिता संजय ने उसी शाम लोहारू पुलिस स्टेशन जाकर रिपोर्ट दर्ज कराने की कोशिश की।
पुलिस ने शिकायत को हल्के में लेते हुए कहा—
“लड़की किसी के साथ भाग गई होगी या दोस्तों संग घूमने गई होगी, खुद लौट आएगी।”
पिता निराश होकर लौट आए।
12 अगस्त: शिकायत दर्ज लेकिन जांच नहीं
अगले दिन दोबारा पहुंचे संजय की रिपोर्ट शाम 5:30 बजे एएसआई शकुंतला ने दर्ज की।
इसके बाद जब वे आइडियल कॉलेज पहुंचे तो कॉलेज स्टाफ ने सीसीटीवी फुटेज पुलिस की मौजूदगी में ही दिखाने की बात कही।
लेकिन पुलिस बिना फुटेज देखे लौट आई।
न तो फोन ट्रेस किया गया, न लास्ट लोकेशन चेक की गई—यानी जांच वहीं ठंडी पड़ गई।
13 अगस्त: नहर किनारे मिली लाश
13 अगस्त की सुबह संजय को एएसआई शकुंतला ने फोन कर बताया कि आइडियल कॉलेज से एक किलोमीटर दूर खेत में एक लड़की की बॉडी मिली है।
पहचान के लिए बुलाए गए संजय ने जैसे ही लाश देखी, उनकी दुनिया उजड़ गई।
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चेहरा डी-कंपोज़ और गल चुका था, मानो तेज़ाब डाला गया हो।
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दोनों आंखें गायब थीं।
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गर्दन लगभग कटी हुई थी और बस कुछ इंच से शरीर से जुड़ी थी।
गांवभर में यह खबर आग की तरह फैली और गुस्साई भीड़ मौके पर जमा हो गई। सबकी मांग थी—“मनीषा को इंसाफ दो।”
14 अगस्त: पहली पोस्टमार्टम रिपोर्ट से चौंकाने वाले निष्कर्ष
भिवानी सिविल हॉस्पिटल की रिपोर्ट ने केस का रुख बदल दिया।
डॉक्टरों के अनुसार:
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किडनी और आंतों में ऑर्गेनोफॉस्फोरस (कीटनाशक) के अंश मिले।
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शरीर या कपड़ों पर सीमेन नहीं मिला।
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बॉडी पर किसी तरह के स्ट्रगल के निशान नहीं थे।
यानी रिपोर्ट के अनुसार न तो मर्डर हुआ और न ही रेप।
यह नतीजे सुनकर परिवार और जनता भड़क उठे।
16 अगस्त: दूसरी पोस्टमार्टम रिपोर्ट और नए सवाल
जनता के दबाव पर बॉडी को रोहतक पीजीआई भेजा गया।
यहां मेडिकल सुपरिटेंडेंट डॉ. कुंदन मित्तल ने कहा:
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गले के कटे निशान “अनियमित” हैं, संभव है जंगली जानवर ने काटा हो।
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चेहरे की हालत को भी जानवरों का हमला बताया गया।
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सीमेन न मिलने से रेप की आशंका फिर खारिज कर दी गई।
परिवार ने रिपोर्ट मानने से इनकार कर दिया और अंतिम संस्कार रोक दिया।
18 अगस्त: अचानक मिला “सुसाइड नोट”
चार दिन बाद पुलिस ने दावा किया कि मनीषा का लिखा हुआ सुसाइड नोट मिला है।
सवाल उठे कि बॉडी मिलने के इतने दिन बाद ही यह नोट क्यों सामने आया?
लोगों को शक और गहरा हो गया कि किसी रसूखदार व्यक्ति को बचाने के लिए साज़िश रची जा रही है।
सीएम की घोषणा: सीबीआई जांच और तीसरा पोस्टमार्टम
जनता के गुस्से के बाद हरियाणा के मुख्यमंत्री ने ट्वीट कर सीबीआई जांच और तीसरा पोस्टमार्टम एम्स में कराने का ऐलान किया।
जांच में गड़बड़ियां: क्यों नहीं मिला सच?
केस की पड़ताल करने पर कई गंभीर लापरवाहियां सामने आईं:
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कॉलेज का सीसीटीवी समय पर जब्त नहीं किया गया।
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क्राइम सीन को सुरक्षित नहीं रखा गया।
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न फोन ट्रेस हुआ, न कॉल रिकॉर्ड चेक हुए।
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गर्दन और चेहरा जानबूझकर नष्ट किए गए ताकि गला घोंटकर हत्या का सबूत न मिले।
फॉरेंसिक के अनुसार, हायॉइड बोन का टूटना स्ट्रैंगुलेशन का सबूत होता है, लेकिन रिपोर्ट में इसे “जानवर का हमला” बताया गया।
जानवर आमतौर पर सॉफ्ट टिश्यू खाते हैं, जबकि यहां सिर्फ हार्ड बोन वाला हिस्सा डैमेज था। कपड़े भी बिल्कुल सुरक्षित थे।
विरोधाभासी रिपोर्ट्स और इंसाफ का सवाल
भिवानी और रोहतक, दोनों पोस्टमार्टम रिपोर्ट्स आपस में ही विरोधाभासी निकलीं।
जनता और परिवार का आरोप है कि यह सब “कवर-अप” है और सच्चाई दबाई जा रही है।
मनीषा केस: रिपोर्ट्स में विरोधाभास और जांच पर सवाल
भिवानी सिविल हॉस्पिटल की पोस्टमार्टम रिपोर्ट ने शुरुआत से ही इस केस को संदेहों के घेरे में ला दिया। रिपोर्ट में साफ तौर पर दर्ज है कि मनीषा की सलवार फटी हुई थी और नारा खुला हुआ था, साथ ही कपड़ों पर संघर्ष के निशान पाए गए। यानी मनीषा ने खुद को बचाने की पूरी कोशिश की थी।
लेकिन हैरानी की बात यह है कि मनीषा के घुटनों पर गहरी चोट थी, जबकि उसी हिस्से पर सलवार बिल्कुल साफ थी। यह इंगित करता है कि सलवार या तो घटना से पहले उतारी गई थी या फिर मौत के बाद पहनाई गई। सवाल यह उठता है कि क्या कोई लड़की खुले खेत में, जहां आम लोगों का आना-जाना हो, खुद अपने कपड़े उतारकर बैठ जाएगी?
रेप एंगल की अनदेखी
रेप की संभावना को पुलिस ने केवल इस आधार पर खारिज कर दिया कि सीमेन नहीं मिला। जबकि सुप्रीम कोर्ट के स्पष्ट निर्देश हैं कि सीमेन की मौजूदगी या अनुपस्थिति से रेप का होना तय नहीं होता।
पॉइजन थ्योरी पर सवाल
पोस्टमार्टम रिपोर्ट में ऑर्गेनो फॉस्फोरस मिला, जिसे पुलिस ने ज़हर खाने का सबूत माना। लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि खेतों में उपयोग होने वाले कीटनाशक से ग्राउंड वाटर तक प्रदूषित होता है और ऐसे में इसके अंश किसी भी व्यक्ति के शरीर में पाए जा सकते हैं।
पुलिस का दावा है कि मनीषा ने दुकान से ज़हर खरीदा और बिल तक लिया। पर यह अजीब है, क्योंकि आमतौर पर लोग दुकानों से बिल तक नहीं लेते। ऐसे में एक लड़की, जो कथित तौर पर आत्महत्या करने जा रही थी, क्यों बिल और रजिस्टर एंट्री करवाएगी?
क्राइम सीन पर लापरवाही
घटनास्थल से न तो ज़हर की बोतल मिली और न ही पैकेट। वहीं, मनीषा की जूतियां इस तरह पड़ी थीं जैसे जानबूझकर उतारी और फेंकी गई हों। पास ही शराब की बोतल और टायर के निशान भी पाए गए, लेकिन पुलिस ने उनका फॉरेंसिक टेस्ट कराना ज़रूरी नहीं समझा।
न तो मिट्टी और टायर प्रिंट्स की जांच हुई और न ही मोबाइल डेटा ट्रेस किया गया।
पोस्टमार्टम रिपोर्ट्स में विरोधाभास
भिवानी और रोहतक पीजीआई की रिपोर्ट्स एक-दूसरे से मेल नहीं खातीं।
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भिवानी रिपोर्ट में आई बॉल्स मिसिंग बताए गए, जबकि रोहतक में लिखा गया कि कॉर्निया और प्यूपिल डीकंपोज़्ड थे।
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भिवानी से केवल हाफ किडनी और स्प्लीन के पार्ट्स भेजे गए थे, लेकिन रोहतक ने रिपोर्ट में किडनी, स्प्लीन, यूट्रस और ओवरीज़ तक एब्सेंट लिख दिया।
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भिवानी से बॉडी वॉश कर प्लास्टिक में पैक भेजी गई थी, फिर रोहतक ने बॉडी पर मिट्टी और घास मिलने का ज़िक्र क्यों किया?
ये अंतर गंभीर सवाल खड़े करते हैं कि क्या रिपोर्ट जानबूझकर बदली गई या जल्दबाजी में गलतियां हुईं।
डेथ टाइमिंग पर बड़ा सवाल
पोस्टमार्टम के समय मनीषा की बॉडी पर मक्खियों के अंडे मिले, लेकिन मैगेट्स नहीं थे। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से यह साबित करता है कि मौत और पहला पोस्टमार्टम 24 घंटे के भीतर हुआ।
पहला पोस्टमार्टम 14 अगस्त शाम 7 बजे हुआ, यानी मौत 13 अगस्त की शाम 7 बजे के बाद ही हुई होगी। लेकिन रिपोर्ट्स में मौत को 2–3 दिन पुराना बताया गया—जो एकदम विपरीत है।
पुलिस का बदलता नैरेटिव
शुरुआत में पुलिस ने अपनी इनक्वेस्ट रिपोर्ट में साफ लिखा था—गला रेत कर हत्या। लेकिन बाद में अचानक केस को आत्महत्या घोषित कर दिया गया।
जनता के विरोध पर कुछ अधिकारियों का सस्पेंशन और ट्रांसफर कर दिया गया, लेकिन जांच किसी सक्षम और निष्पक्ष अधिकारी को नहीं सौंपी गई।
नोट पर भी संदेह
मनीषा की बॉडी मिलने के कई दिन बाद एक नोट मिला। नोट की हैंडराइटिंग इतनी साफ और अलग-अलग शब्दों में लिखी थी, जैसे आराम से लिखा गया हो। जबकि ऐसे हालात में लिखावट सामान्यतः डिस्टर्ब होती है, न कि इतनी कंपोज़्ड।
इस केस की जांच में इतने लूपहोल्स और विरोधाभास हैं कि असली अपराधी पकड़े भी जाएं तो भी कोर्ट में उन्हें बेनिफिट ऑफ डाउट मिल सकता है। यह मामला साफ तौर पर मर्डर का प्रतीत होता है, जिसमें रेप या अटेम्प्ट टू रेप की संभावना बहुत अधिक है।
लेकिन लापरवाही, रिपोर्ट्स की हेराफेरी और पुलिस की कमजोर जांच ने इस केस को इतना जटिल बना दिया है कि अब सच और इंसाफ की उम्मीद बेहद धुंधली हो गई है।
दोनों पोस्टमार्टम रिपोर्ट्स आपस में ही विरोधाभासी थीं और पूरे केस पर एक बड़ा सवाल छोड़ गईं, क्या मनीषा को इंसाफ मिलेगा या यह मामला हमेशा के लिए दबा दिया जाएगा?