श्रावण पुत्रदा एकादशी: संतान सुख और परिवार की खुशहाली का दिव्य वरदान

श्रावण पुत्रदा एकादशी

श्रावण पुत्रदा एकादशी हिन्दू पंचांग के अनुसार श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है। वर्ष 2025 में यह एकादशी 6 अगस्त 2025, बुधवार को मनाई जाएगी। यह व्रत विशेष रूप से संतान की प्राप्ति और संतान की लंबी उम्र के लिए किया जाता है। ‘पुत्रदा’ का अर्थ होता है ‘पुत्र प्रदान करने वाली’, इसलिए यह व्रत उन दंपतियों के लिए अत्यंत फलदायी माना जाता है जिन्हें संतान सुख की इच्छा होती है।

इस दिन भगवान विष्णु के ‘नारायण’ स्वरूप की पूजा की जाती है। श्रद्धालु व्रत रखते हैं, दिन भर उपवास करते हैं और रात में जागरण कर भगवान विष्णु का ध्यान करते हैं। एकादशी की तिथि पर स्नान कर के पवित्र व्रत का संकल्प लिया जाता है, और अगले दिन द्वादशी पर व्रत का पारण किया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस व्रत को विधिपूर्वक करने से पापों का नाश होता है और पुण्य की प्राप्ति होती है।

श्रावण पुत्रदा एकादशी को वैकुंठ एकादशी, मोक्षदा एकादशी जैसी अन्य पवित्र एकादशियों के समान अत्यंत शुभ और फलदायी माना जाता है। यह व्रत खासतौर पर उन विवाहित दंपतियों द्वारा किया जाता है जिन्हें संतान प्राप्ति में कठिनाई हो रही हो। इस दिन भक्त उपवास रखते हैं, भगवान विष्णु की विधिपूर्वक पूजा-अर्चना करते हैं और तुलसी, शंख तथा विष्णु सहस्रनाम का पाठ करते हैं।

इस दिन तुलसी पत्र के साथ भगवान विष्णु को पीले पुष्प, पंचामृत और भोग अर्पित किया जाता है। कथा श्रवण, दान-पुण्य, ब्राह्मणों को भोजन और जरूरतमंदों की सेवा करना विशेष पुण्यकारी माना जाता है।

2025 में व्रत का शुभ मुहूर्त:

  • एकादशी तिथि प्रारंभ: 5 अगस्त 2025 को रात्रि 08:32 बजे

  • एकादशी तिथि समाप्त: 6 अगस्त 2025 को सायं 06:51 बजे

  • पारण का समय: 7 अगस्त 2025 प्रातः 05:45 से 08:21 बजे तक

श्रावण पुत्रदा एकादशी पूजा विधि इस प्रकार है:

  1. स्नान और शुद्धिकरण:
    एकादशी के दिन सुबह जल्दी उठकर गंगा या किसी शुद्ध जल से स्नान करें। शरीर को अच्छी तरह से साफ करें और साफ-सुथरे वस्त्र पहनें।
  2. स्थल चयन और तैयारी:
    घर में पूजा करने के लिए एक साफ और शांत स्थान चुनें। वहां पूजा स्थल की सफाई करें और सफेद या पीला कपड़ा बिछाएं।
  3. मूर्ति या तस्वीर स्थापना:
    भगवान विष्णु की मूर्ति या तस्वीर को पूजा स्थल पर स्थापित करें। यदि संभव हो तो तुलसी का पौधा भी पूजा स्थल पर रखें।
  4. दीपक और धूप:
    पूजा स्थल पर दीपक जलाएं और अगरबत्ती या धूप प्रज्वलित करें।
  5. पूजा सामग्री समर्पण:
    भगवान विष्णु को हल्दी, सिंदूर, पुष्प, अक्षत (चावल), फल, मिठाई और जल अर्पित करें। तुलसी के पत्ते विशेष रूप से भगवान विष्णु को चढ़ाएं।
  6. एकादशी व्रत कथा और मंत्र जाप:
    पुत्रदा एकादशी की कथा पढ़ें या सुनें। इसके बाद भगवान विष्णु के मंत्र जैसे “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” का जाप करें।
  7. प्रसाद वितरण:
    पूजा समाप्ति पर भगवान को भोग के रूप में फल और मिठाई अर्पित करें। फिर प्रसाद परिवार के सभी सदस्यों और आवश्यकतानुसार दूसरों में वितरित करें।
  8. पूजा के बाद उपवास:
    इस दिन व्रत रखने वाले फलाहारी होते हैं और दान-पुण्य करते हैं। यदि पूरी तरह उपवास नहीं रख सकते तो फलाहार या सादा भोजन कर सकते हैं।
  9. शाम को संध्या आरती:
    शाम के समय भगवान विष्णु की आरती करें और दिनभर की भक्ति के लिए धन्यवाद प्रकट करें।

श्रावण पुत्रदा एकादशी कथा:

बहुत समय पहले एक ऋषि थे, जिनका नाम सुकर्मा था। वे अपने तप और धर्म के कारण स्वर्ग में भी विख्यात थे। लेकिन उन्हें कोई संतान नहीं थी, जिससे वे बहुत दुखी थे। उन्होंने भगवान विष्णु की पूजा की और पुत्र प्राप्ति की प्रार्थना की।

एकादशी के दिन, जब वे व्रत और पूजा कर रहे थे, तभी भगवान विष्णु स्वयं उनकी सेवा में प्रकट हुए। भगवान ने उन्हें बताया कि पुत्रदा एकादशी के दिन जो भक्त पूरी श्रद्धा और निष्ठा से व्रत रखता है और इस दिन विष्णु की पूजा करता है, उसे संतान की प्राप्ति अवश्य होती है।

ऋषि सुकर्मा ने भगवान की बात मानी और पुत्रदा एकादशी का व्रत धारण किया। भगवान विष्णु की कृपा से उनकी मनोकामना पूरी हुई और उन्हें पुत्र प्राप्त हुआ। इसके बाद से यह एकादशी सभी माता-पिता के लिए पुत्र प्राप्ति का वरदान देने वाली मानी गई।

कथा का मुख्य संदेश यह है कि जो व्यक्ति श्रद्धा से इस व्रत को करता है, भगवान विष्णु की भक्ति करता है, उसे संतान सुख की प्राप्ति होती है और परिवार में सुख-समृद्धि आती है।

यह कथा माता-पिता को पुत्र की प्राप्ति के लिए प्रेरित करती है और इस दिन व्रत रखने का महत्व समझाती है। श्रद्धा और भक्ति से किया गया व्रत अत्यंत फलदायी होता है।

श्रावण पुत्रदा एकादशी पर दान का अत्यधिक महत्व है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा और व्रत रखने से संतान सुख की प्राप्ति होती है, साथ ही दान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है। विशेष रूप से इस दिन अन्न, भोजन, वस्त्र, तिल, फल, और दक्षिणा का दान करना अत्यंत फलदायक माना जाता है।

दान का महत्व

  • संतान सुख की प्राप्ति: श्रावण पुत्रदा एकादशी पर दान करने से संतान सुख की प्राप्ति होती है।
  • पुण्य की प्राप्ति: इस दिन दान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है, जिससे जीवन में सुख-शांति और समृद्धि आती है।
  • पापों का नाश: दान करने से पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
  • धार्मिक कर्तव्य: दान करना धार्मिक कर्तव्य माना जाता है, जिससे व्यक्ति का जीवन धन्य होता है।

किसे दान करें?

श्रावण पुत्रदा एकादशी पर ब्राह्मणों और जरूरतमंदों को दान देना विशेष रूप से शुभ माना जाता है। इसके अलावा, असहाय, निर्धन, और दिव्यांग व्यक्तियों को भी दान देना पुण्यकारी होता है। नारायण सेवा संस्थान जैसे संगठनों के माध्यम से भी दान किया जा सकता है, जो दीन-हीन और असहाय लोगों को भोजन और अन्य सहायता प्रदान करते हैं।

इस दिन दान करने से न केवल संतान सुख की प्राप्ति होती है, बल्कि व्यक्ति के जीवन में सुख, समृद्धि और शांति भी आती है। इसलिए, इस पवित्र अवसर पर दान करना अत्यंत लाभकारी है।

यदि आप इस विषय पर और जानकारी चाहते हैं या दान विधि के बारे में जानना चाहते हैं, तो कृपया बताएं।

श्रावण पुत्रदा एकादशी पूजा विधि को श्रद्धा और भक्ति के साथ करने से संतान प्राप्ति का वर मिलता है और परिवार में सुख-शांति बनी रहती है। श्रावण पुत्रदा एकादशी संतान सुख की प्राप्ति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण व्रत है। इस दिन विधिपूर्वक पूजा और व्रत रखने से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है और संतान सुख की प्राप्ति होती है। इस वर्ष, यह व्रत 5 अगस्त 2025 को रखा जाएगा। श्रद्धालुओं को इस पवित्र अवसर पर भगवान विष्णु की पूजा विधिपूर्वक करनी चाहिए।

यह व्रत केवल धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि आत्मिक शुद्धि और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा लाने के लिए भी महत्वपूर्ण माना जाता है।

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