सफला एकादशी हिंदू पंचांग के अनुसार पौष मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है। यह व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है और माना जाता है कि इसके प्रभाव से व्यक्ति के सभी अधूरे कार्य पूर्ण होते हैं तथा जीवन में सफलता, सुख-समृद्धि और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन विधिपूर्वक व्रत रखकर श्रीहरि विष्णु की पूजा करने से पापों का नाश होता है और मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। सफला एकादशी 15 दिसंबर 2025, सोमवार को है। सफला एकादशी का उल्लेख पुराणों में भी मिलता है, जहां इसे अत्यंत फलदायी व्रत बताया गया है। व्रती इस दिन उपवास रखकर विष्णु सहस्रनाम का पाठ करते हैं, दीपदान करते हैं और अगले दिन द्वादशी को पारण करते हैं। ऐसा विश्वास है कि सच्चे मन से किया गया सफला एकादशी व्रत जीवन की बाधाओं को दूर कर सफलता का मार्ग प्रशस्त करता है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार सफला एकादशी का व्रत करने से पूर्व जन्मों के पापों का नाश होता है तथा रुके हुए कार्य पूर्ण होते हैं। श्रद्धा और नियमपूर्वक किया गया यह व्रत जीवन की बाधाओं को दूर कर मनोकामनाओं की पूर्ति करता है और आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त करता है।
धार्मिक मान्यता है कि इससे व्यक्ति के जीवन के सभी कार्यों में सफलता आती है, पापों का नाश होता है और भक्त को मानसिक शांति तथा आध्यात्मिक प्रगति मिलती है। योग, ध्यान और व्रत के संयम से मन और आत्मा दोनों की शुद्धि होती है।
तिथि और समय:
पंचांग के अनुसार सफला एकादशी की तिथि 14 दिसम्बर 2025 को शाम लगभग 6:49 बजे से प्रारम्भ होकर 15 दिसम्बर 2025 को रात लगभग 9:19 बजे तक रहेगी। चूँकि व्रत उदयातिथि के आधार पर मनाया जाता है, इसलिए 15 दिसम्बर को ही व्रत रखा जाता है। एकादशी व्रत का पारण 16 दिसम्बर 2025 (मंगलवार) को प्रातः लगभग 07:07 बजे से 09:11 बजे तक शुभ मुहूर्त में करना उत्तम माना जाता है।
- एकादशी तिथि प्रारंभ: 14 दिसंबर 2025 को शाम लगभग 06:49 बजे से
- एकादशी तिथि समाप्त: 15 दिसंबर 2025 को रात लगभग 09:19 बजे तक
- व्रत दिवस: 15 दिसंबर 2025 (सोमवार)
- पारण (व्रत तोड़ने का शुभ समय): 16 दिसंबर 2025 को सुबह लगभग 07:07 बजे से 09:11 बजे तक
पूजा विधि:
1. स्नान और व्रत संकल्प
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सुबह जल्दी उठकर ब्रह्ममुहूर्त में शुद्ध जल से स्नान करें।
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स्नान के बाद शुद्ध वस्त्र पहनें।
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व्रत संकल्प लें और भगवान विष्णु/हरि की प्रतिमा या चित्र के सामने बैठकर प्रणाम करें।
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संकल्प करते समय मन में व्रत का उद्देश्य और सफलता की कामना करें।
2. पूजा सामग्री
पूजा के लिए निम्न सामग्री जुटाएँ:
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भगवान विष्णु या कृष्ण की मूर्ति/चित्र
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तुलसी के पत्ते
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पीले या सफ़ेद फूल
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धूप, दीप और अगरबत्ती
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नैवेद्य (फल, मिठाई, खीर आदि)
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अक्षत (चावल), हल्दी, कुंकुम
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जल और पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, जल)
3. पूजा प्रारंभ
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पूजा स्थान पर साफ आसन बिछाएँ और भगवान का चित्र/मूर्ति रखें।
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दीपक जलाएँ और धूप/अगरबत्ती करें।
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तुलसी के पत्ते चढ़ाएँ और फल/मिठाई अर्पित करें।
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विष्णु मंत्र या संकल्प मंत्र का जाप करें:
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“ॐ नमो नारायणाय” 108 बार
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या विष्णु सहस्रनाम पाठ करें।
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भजन, कीर्तन या गीता पाठ कर सकते हैं।
4. दान और पुण्य कार्य
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व्रत के दौरान दान करना अत्यंत शुभ माना जाता है।
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आप गरीबों में अन्न, वस्त्र, धन या तुलसी/पानी का दान कर सकते हैं।
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ब्राह्मणों को भोजन कराना और जरूरतमंदों को भोजन देना विशेष फलदायी है।
5. व्रत का पालन
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व्रत में फलाहार या निर्जला व्रत रखा जा सकता है।
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दिनभर सत्य बोलें, अहिंसा का पालन करें और तामसिक भोजन का परित्याग करें।
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मानसिक शांति बनाए रखें और भगवान विष्णु की भक्ति में ध्यान लगाएँ।
6. पारण (व्रत समाप्ति)
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अगले दिन सुबह, शुभ मुहूर्त में व्रत का पारण करें।
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पारण के समय हल्का भोजन लें और भगवान को धन्यवाद दें।
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पारण के बाद भी व्रत का प्रभाव और पुण्य बना रहता है।
सफला एकादशी व्रत कथा:
सफला एकादशी की कथा प्राचीन काल की है जब चम्पावती नामक नगरी में राजा माहिष्मत राज्य करता था। उसके चार पुत्र थे। उनमें से सबसे बड़ा पुत्र लुम्भक अपने पितृ कृते होते हुए भी दुष्ट, पापी और बुरे आचरण वाला था। वह न केवल बुरे कार्य करता था, बल्कि देवताओं, ब्राह्मणों और वैष्णवों की निंदा करता था, और अपने पिता के धन को भी नष्ट कर देता था। उसकी बुराई और दुष्टता से पूरा राज्य दुख में था। अंततः राजा माहिष्मत ने क्रोध में आकर अपने पुत्र को राज्य से निकाल दिया।
लुम्भक वन में चला गया जहाँ उसने वन्य जीवन बिताया और पापयुक्त जीवन जिया। समय के साथ उसका मन पाप और भी अधिक अंधकार में डूब गया। फिर एक दिन उसने वन में एक प्राचीन पीपल का वृक्ष देखा जो किसी पवित्र देवता का आवास माना जाता था। वह वहाँ कुछ फल खाकर विश्राम करने लगा। जब “सफला एकादशी की एकादशी तिथि” आई, लुम्भक संयोगवश वही वृक्ष के नीचे सो रहा था। एकादशी के दिन का दिनभर कठिन तपस्या, भूखे रहकर जागरण और रात का विश्राम न करना एक कठिन अनुभव था, अतः वह बेहोश पड़ा रहा।
दोपहर के समय उसे चेतना प्राप्त हुई और उसने आस-पास देखा। तब उसने वहां उपलब्ध फल एकत्र किए और भगवान विष्णु से प्रार्थना करते हुए कहा, “हे भगवान! इन फलों से मेरी भक्ति स्वीकार करें और मुझे अपनी कृपा दें।” उसने झूठे मन से नहीं, बल्कि अत्यंत संकोच और असहाय अवस्था में यह विनती की। तभी एक आकाशवाणी हुई कि “हे राजकुमार! तूमने ‘सफला’ एकादशी का व्रत किया है, इसलिए तुम्हें राज्य, पुत्र और सौभाग्य मिलेगा।” उसे दिव्य रूप मिला और वह अपना पापी स्वभाव छोड़कर भगवान विष्णु की भक्ति में लीन हो गया।
भगवान विष्णु की कृपा से वह पंद्रह वर्षों तक सम्पन्न राज्य का संचालन किया और उसके धर्मात्मा पुत्र का जन्म हुआ। जब पुत्र मनोज्ञ बड़ा हुआ, तब लुम्भक ने राज्य बेटे को सौंप दिया और स्वयं भगवान श्रीकृष्ण के पास चल दिया जहाँ मृत्यु के पश्चात् दुःख नहीं होता। कथा के अंत में यह संदेश मिलता है कि जो व्यक्ति विधिपूर्वक ‘सफला एकादशी’ का व्रत करता है, वह जीवन में सुख‑समृद्धि, सफलता और मोक्ष की प्राप्ति कर सकता है।
सत्य श्रद्धा से व्रत करने और भगवान विष्णु की भक्ति करने वाले को कभी भी देर से नहीं सफलता और कृपा मिल सकती है, भले ही वह जीवन में पहले कितना भी पापी रहा हो। सफला एकादशी के व्रत का पालन जीवन को सकारात्मक दिशा देता है और सभी बाधाओं को दूर करता है।