नरक चतुर्दशी, जिसे काली चौदस, भूत चतुर्दशी, रूप चौदस, या छोटी दिवाली भी कहा जाता है, हिन्दू पंचांग के अनुसार अश्विन माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। यह पर्व मुख्य रूप से पश्चिमी भारत, विशेषकर गुजरात और महाराष्ट्र में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। इस वर्ष, काली चौदस 19 अक्टूबर 2025, रविवार को मनाई जाएगी। नरक चौदस, दीपावली महापर्व का दूसरा दिन है। यह पर्व विशेष रूप से कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। इस वर्ष, 2025 में, नरक चतुर्दशी 19 अक्टूबर को मनाई जाएगी, जबकि रूप चौदस का स्नान 20 अक्टूबर को होगा।
महत्व और धार्मिक मान्यता
काली चौदस का दिन विशेष रूप से देवी काली की पूजा के लिए समर्पित है। मान्यता है कि इस दिन देवी काली की पूजा करने से व्यक्ति के जीवन से सभी प्रकार के भय, नकारात्मकता, और शत्रुओं का नाश होता है। यह दिन विशेष रूप से तंत्र-मंत्र साधकों के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि इस दिन की गई साधना से मानसिक और शारीरिक बल में वृद्धि होती है।
इसके अतिरिक्त, यह दिन नरकासुर के वध की कथा से भी जुड़ा हुआ है। नरक चतुर्दशी का धार्मिक महत्व भगवान श्री कृष्ण और उनकी पत्नी सत्यभामा द्वारा राक्षस नरकासुर का वध करने की घटना से जुड़ा हुआ है। नरकासुर ने 16,100 कन्याओं को बंदी बना रखा था और देवताओं से युद्ध कर रहा था। भगवान श्री कृष्ण ने सत्यभामा के साथ मिलकर नरकासुर का वध किया और उन कन्याओं को मुक्त किया। इस विजय के उपलक्ष्य में नरक चतुर्दशी का पर्व मनाया जाता है, जो अंधकार पर प्रकाश की विजय का प्रतीक है।
काली चौदस पूजा मुहूर्त 2025:
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काली चौदस पूजा मुहूर्त: रात्रि 10:57 बजे से 11:46 बजे तक (लगभग 49 मिनट)
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चतुर्दशी तिथि: शाम 1:51 बजे (19 अक्टूबर) से रात 3:44 बजे (20 अक्टूबर) तक
यह पूजा निशिता काल (मध्य रात्रि का समय) में की जाती है, जो विशेष रूप से शुभ माना जाता है।
पूजा विधि
काली चौदस की पूजा विशेष रूप से मध्य रात्रि के समय, जिसे ‘महानिशिता’ कहा जाता है, की जाती है। इस समय देवी काली की पूजा अत्यधिक फलदायी मानी जाती है। पूजा में लाल गुड़हल के फूलों की माला अर्पित करना, तंत्र-मंत्रों का उच्चारण करना, और विशेष प्रकार के भोग जैसे गुड़, अदरक, और आठ प्रकार के भुने हुए अनाज अर्पित करना शामिल है। कुछ स्थानों पर, प्रतीकात्मक बलि के रूप में लौकी या गन्ने का प्रयोग किया जाता है।
वाराणसी में काली चौदस (छोटी दिवाली) के अवसर पर काली मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना का आयोजन होता है। यह पर्व देवी काली की आराधना का दिन होता है, जो विशेष रूप से तंत्र-मंत्र साधकों और देवी काली के भक्तों के लिए महत्वपूर्ण है।
नरक चतुर्दशी की पूजा विधि इस प्रकार है:
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अभ्यंग स्नान (रूप चौदस स्नान): प्रातः काल सूर्योदय से पूर्व उबटन (उद्वर्तन) करके तिल के तेल से स्नान करें। यह स्नान शरीर, मन और आत्मा की शुद्धि के लिए किया जाता है।
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यमराज की पूजा: स्नान के बाद यमराज की पूजा करें। घर के बाहर तिल के तेल का दीपक जलाएं और उसे यमराज के प्रतीक के रूप में रखें। इससे अकाल मृत्यु से रक्षा की जाती है।
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दीप जलाना: घर के प्रत्येक कोने में दीपक जलाएं, जिससे अंधकार का नाश हो और घर में सुख-शांति का वास हो।
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दान-पुण्य: गरीबों को भोजन, वस्त्र, तेल, दीपक या अनाज का दान करें। यह पुण्य की प्राप्ति का माध्यम है।
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सत्संग और भजन: इस दिन सत्संग में भाग लें और भजन-कीर्तन करें, जिससे मानसिक शांति और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
विशेष परंपराएँ
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करेत (करेला) का उबटन: करेला को पैरों तले रौंदना या उबटन करना नरकासुर के वध का प्रतीक है।
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भूत चतुर्दशी: पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश में इस दिन को ‘भूत चतुर्दशी’ के रूप में मनाया जाता है, जिसमें 14 दीपकों से घर के प्रत्येक कोने को प्रकाशित किया जाता है, ताकि पूर्वजों की आत्माओं का स्वागत किया जा सके।
दीपावली पर हनुमान पूजा: शक्तिप्रदायक अनुष्ठान और शुभ मुहूर्त
वर्ष 2025 में दिवाली का पर्व 20 अक्टूबर को मनाया जाएगा। इस दिन विशेष रूप से लक्ष्मी पूजन का आयोजन होता है। हनुमान जयंती, जो कि चैत्र माह की पूर्णिमा को मनाई जाती है, इस वर्ष 12 अप्रैल को पड़ी थी। हालांकि, कुछ स्थानों पर विशेष रूप से दिवाली के समय भी हनुमान जी की पूजा की जाती है, जिसे ‘दीपावली हनुमान पूजा’ कहा जाता है। दीपावली के अवसर पर हनुमान पूजा का आयोजन विशेष महत्व रखता है, जिसे विशेष रूप से उत्तर भारत, गुजरात और महाराष्ट्र में मनाया जाता है। यह पूजा मुख्य रूप से काली चौदस के दिन की जाती है, जो इस वर्ष रविवार, 19 अक्टूबर 2025 को है। कुछ स्थानों पर इसे 20 अक्टूबर को भी मनाया जाता है, जो स्थानीय परंपराओं पर निर्भर करता है।
हनुमान पूजा हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण और शक्तिशाली अनुष्ठान है, जो भगवान श्री हनुमान की पूजा-अर्चना के माध्यम से मानसिक और शारीरिक बल, नकारात्मक ऊर्जा से मुक्ति, और जीवन में सुख-शांति की प्राप्ति के लिए की जाती है। यह पूजा विशेष रूप से मंगलवार के दिन, हनुमान जयंती, और अन्य विशेष अवसरों पर की जाती है। हनुमान जी को शक्ति, साहस, भक्ति, और निष्ठा का प्रतीक माना जाता है। उनकी पूजा से भक्तों को मानसिक शांति, आत्मविश्वास, और जीवन में आने वाली कठिनाइयों से उबरने की शक्ति मिलती है। यह पूजा विशेष रूप से शनि दोष, मंगल दोष, और ग्रहों के अशुभ प्रभावों को दूर करने के लिए की जाती है।
हनुमान पूजा मुहूर्त (दीपावली हनुमान पूजा):
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तिथि: 19 अक्टूबर 2025 (रविवार)
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समय: रात्रि 10:57 बजे से 11:46 बजे तक (लगभग 50 मिनट)
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विशेष: यह पूजा काली चौदस के दिन होती है, जो रात्रि के समय होती है। इस दिन बुरी आत्माओं से सुरक्षा के लिए विशेष रूप से हनुमान जी की पूजा की जाती है।
पूजा विधि
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स्थान की शुद्धि: पूजा स्थल को स्वच्छ करें और वहां एक लाल या पीले रंग का कपड़ा बिछाएं।
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संकल्प: पानी में अक्षत, फूल, और तिलक सामग्री लेकर संकल्प मंत्र का उच्चारण करें।
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गणेश पूजन: भगवान गणेश की पूजा करके विघ्नों के निवारण की प्रार्थना करें।
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हनुमान जी की पूजा: हनुमान जी की मूर्ति या चित्र को लाल चंदन, सिंदूर, और लाल फूल अर्पित करें।
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दीप जलाना: घी या कपूर का दीपक जलाएं और उसकी चारों बातियों को हनुमान जी के चरणों में घुमाएं।
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हनुमान चालीसा का पाठ: हनुमान चालीसा का पाठ करें, जिससे मानसिक शांति और आशीर्वाद की प्राप्ति होती है।
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आरती: हनुमान जी की आरती करें और भक्तिपूर्वक उनका गुणगान करें।
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प्रसाद वितरण: बूंदी के लड्डू, गुड़, और चने का प्रसाद वितरित करें।
वाराणसी में आयोजन:
वाराणसी में दीपावली के अवसर पर संकटमोचन हनुमान मंदिर में हनुमान पूजा का विशेष महत्व है। यह पूजा मुख्य रूप से संकटमोचन हनुमान जी की आराधना के लिए की जाती है, जिन्हें भक्तों का संकट हरने वाला माना जाता है। दीपावली के समय यहां विशेष पूजा और अनुष्ठान आयोजित किए जाते हैं, जिसमें हजारों भक्त भाग लेते हैं।
दीपावली के दिन संकटमोचन हनुमान मंदिर में दीपक और लौंग, गुड़, लड्डू आदि प्रसाद का वितरण किया जाता है। यह दिन शत्रुओं और नकारात्मक शक्तियों पर विजय, घर में सुख-समृद्धि और जीवन में सुरक्षा का प्रतीक माना जाता है।मंदिर में श्रद्धालुओं की भीड़ के कारण इस अवसर पर विशेष व्यवस्था की जाती है, और पूरे वाराणसी में संकटमोचन हनुमान जी की पूजा का महोत्सव देखने को मिलता है।
प्रमुख काली मंदिरों में दर्शन
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काशीराज काली मंदिर (Kashi Raj Kali Mandir): यह मंदिर वाराणसी के गोदौलिया क्षेत्र में स्थित है और काशी के प्रमुख काली मंदिरों में से एक माना जाता है। यहां काली चौदस के दिन विशेष पूजा का आयोजन होता है, जिसमें भक्त देवी काली की आराधना करते हैं। वाराणसी के गोदौलिया चौक के पास स्थित काशी राज काली मंदिर, काशी नरेश के परिवार द्वारा निर्मित एक ऐतिहासिक और स्थापत्य कला की दृष्टि से महत्वपूर्ण मंदिर है। यह मंदिर लगभग 200 वर्ष पुराना है और इसे “गुप्त मंदिर” भी कहा जाता है, क्योंकि यह स्थानिक लोगों के लिए एक छिपा हुआ खजाना है।
मंदिर की वास्तुकला में प्राचीन और आधुनिक कला का अद्भुत मिश्रण देखने को मिलता है। यह रथ के आकार में निर्मित है और पूरी तरह से पत्थर से बना है। मंदिर के खंभों, दीवारों और द्वारों पर शेर, हाथी, नर्तकियों और देवी-देवताओं की नक्काशी की गई है, जो उस समय की अत्यधिक विकसित पाषाण कला का प्रमाण हैं। मंदिर के निर्माण में प्रयुक्त पत्थर की पंखुड़ियां, घंटियां और अंगूठियां उस समय की शिल्पकला के उत्कृष्ट उदाहरण हैं।
पूजा और धार्मिक महत्व
मंदिर में देवी काली की भव्य प्रतिमा स्थापित है, और साथ ही गर्भगृह में गौतमेश्वर शिवलिंग भी विराजमान है। मान्यता है कि इस स्थान पर गौतम ऋषि का आश्रम था और उन्होंने यहां शिवलिंग की स्थापना की थी, जिससे इसे गौतमेश्वर शिवलिंग कहा जाता है। मंदिर में नवरात्रि के दौरान विशेष पूजा-अर्चना और उत्सवों का आयोजन होता है, जिसमें भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है।
स्थान और पहुंच
काशीराज काली मंदिर वाराणसी के गोदौलिया चौक के पास बांसफाटक रोड पर स्थित है। यह स्थान व्यस्त होने के बावजूद, मंदिर का प्रवेश द्वार एक संकरी गली में स्थित है, जिससे इसे ढूंढना थोड़ा चुनौतीपूर्ण हो सकता है। मंदिर तक पहुंचने के लिए आप रिक्शा या पैदल यात्रा कर सकते हैं। गोदौलिया से मंदिर तक की दूरी लगभग 15-20 मिनट की पैदल यात्रा की है।
समय और दर्शन
मंदिर का समय सुबह 5 बजे से रात 8 बजे तक है। सुबह के समय विशेष आरती का आयोजन होता है, और शाम को शयन आरती होती है। मंदिर में प्रवेश के लिए कोई शुल्क नहीं लिया जाता, लेकिन दर्शन के समय शांति बनाए रखना आवश्यक है।
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कालरात्रि देवी मंदिर (Kalratri Devi Mandir): यह मंदिर काशी के नवदुर्गा देवी मंदिरों में से एक है और देवी कालरात्रि को समर्पित है। यहां काली चौदस के दिन विशेष पूजा और अनुष्ठान होते हैं, जिससे भक्तों को मानसिक और शारीरिक शांति मिलती है।
वाराणसी स्थित कालरात्रि देवी मंदिर, काशी के प्रमुख शक्ति पीठों में से एक है। यह मंदिर मीरघाट के समीप, कालिका गली में स्थित है, जो विश्वनाथ गली के समानांतर एक संकरी गली है। यहां माता कालरात्रि की पूजा विशेष रूप से सप्तमी तिथि को की जाती है, जो नवरात्रि के सातवें दिन पड़ती है। मंदिर में माता कालरात्रि की भव्य मूर्ति स्थापित है, जो चार भुजाओं वाली और विकराल रूप में दर्शायी जाती है। कहा जाता है कि इस मंदिर में दर्शन मात्र से ही भक्तों को भय से मुक्ति मिलती है।मंदिर में पूजा-अर्चना के दौरान भक्त लाल चुनरी, सिंदूर, चूड़ी और नारियल अर्पित करते हैं। मंदिर में बलि देने की परंपरा है, लेकिन यह बलि किसी जीव की नहीं, बल्कि नारियल की दी जाती है। मंदिर में प्रवेश के लिए कोई शुल्क नहीं लिया जाता, लेकिन श्रद्धालुओं से अनुरोध है कि वे मंदिर परिसर में शांति बनाए रखें और पूजा विधि का पालन करें।
वाराणसी में काली चौदस (नरक चतुर्दशी) के दिन भी इस मंदिर में विशेष पूजा का आयोजन होता है। इस दिन विशेष रूप से तंत्र-मंत्र साधकों और देवी काली के भक्तों के लिए पूजा का महत्व है। मंदिर में तंत्र-मंत्रों का उच्चारण, देवी काली की प्रतिमा पर फूलों की माला अर्पित करना और विशेष भोग अर्पित करना शामिल है। यह दिन आत्मशुद्धि, मानसिक बल और नकारात्मक शक्तियों से मुक्ति का प्रतीक है।
यदि आप वाराणसी में हैं और देवी काली की आराधना करना चाहते हैं, तो कालरात्रि देवी मंदिर में दर्शन करना आपके लिए अत्यधिक लाभकारी होगा। यह मंदिर न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि काशी की सांस्कृतिक धरोहर का भी अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत करता है।
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काली मठ (Kali Math): यह मंदिर लक्ष्मी कुंड के पास स्थित है और तंत्र-मंत्र साधना के लिए प्रसिद्ध है। यहां काली चौदस के दिन विशेष तांत्रिक अनुष्ठान होते हैं, जो भक्तों की आंतरिक शक्ति को जागृत करते हैं। वाराणसी के लक्सा क्षेत्र में स्थित काली मठ, एक ऐतिहासिक और रहस्यमय स्थल है, जो लक्ष्मी कुंड के पास स्थित है। यह मठ तंत्र साधना और शाक्त परंपरा के अभ्यास के लिए प्रसिद्ध है। काली मठ का इतिहास लगभग 900 वर्ष पुराना है। यह मठ एक ब्राह्मण पंडित, वाणी विलास की कथा से जुड़ा हुआ है। कहा जाता है कि पंडित वाणी विलास को काशी में संन्यास दीक्षा प्राप्त करने के लिए एक प्रतिष्ठित गुरु की आवश्यकता थी। हालांकि, उनके मांसाहारी आहार के कारण उन्हें दीक्षा नहीं दी गई। निराश होकर, उन्होंने लक्ष्मी कुंड के पास एक मृत मछली को एक डंडे पर लटका दिया और काशी के संन्यासियों को शास्त्रार्थ के लिए चुनौती दी। कोई भी संन्यासी उन्हें पराजित नहीं कर सका, और अंततः उन्होंने काशी विश्वनाथ से दीक्षा प्राप्त की।
यदि आप काली चौदस के दिन वाराणसी में हैं, तो इन प्रमुख काली मंदिरों में दर्शन करना और पूजा में सम्मिलित होना आपके लिए अत्यधिक लाभकारी होगा। यह दिन आत्मशुद्धि, मानसिक बल, और नकारात्मक शक्तियों से मुक्ति का प्रतीक है।
विशेष ध्यान देने योग्य बातें
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पूजा के समय मोबाइल फोन का उपयोग और विश्राम से बचना चाहिए।
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पूजा के बाद ‘घोट’ (पूजा के समय उपयोग किए गए पात्र) का विसर्जन सूर्योदय से पहले कर देना चाहिए।
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काली चौदस के दिन उबटन स्नान (अभ्यंग स्नान) का विशेष महत्व है, जिससे शरीर की नकारात्मक ऊर्जा समाप्त होती है।
कुल मिलाकर, काली चौदस का पर्व आत्मशुद्धि, मानसिक बल, और नकारात्मक शक्तियों से मुक्ति का प्रतीक है। यह दिन विशेष रूप से तंत्र-मंत्र साधकों और देवी काली के भक्तों के लिए अत्यधिक महत्व रखता है। नरक चतुर्दशी शुद्धता, सकारात्मकता और प्रकाश का संदेश देती है। इस दिन क्रोध, झगड़ा, नकारात्मकता और तामसिक भोजन से परहेज करना चाहिए। सत्य बोलना, दूसरों का सम्मान करना और अच्छे कार्य करना इस दिन की प्रमुख विशेषताएँ हैं। नरक चतुर्दशी का पर्व न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह समाज में अच्छाई, शांति और समृद्धि की भावना को भी प्रोत्साहित करता है।
संकटमोचन हनुमान मंदिर वाराणसी, उत्तर प्रदेश में गंगा नदी के किनारे स्थित एक प्रमुख धार्मिक स्थल है। इस मंदिर में भगवान हनुमान की पूजा होती है और इसे “संकटमोचन” इसलिए कहा जाता है क्योंकि हनुमान जी को संकटों का नाश करने वाला माना जाता है। यह मंदिर महर्षि तुलसीदास से जुड़ा हुआ है और कहा जाता है कि उन्होंने यहीं पर हनुमान जी की भक्ति और उनकी महिमा का प्रसार किया। संकटमोचन हनुमान मंदिर वाराणसी के सबसे प्राचीन और प्रसिद्ध हनुमान मंदिरों में से एक है, जहाँ दीपावली हनुमान पूजा, हनुमान जयंती और अन्य धार्मिक आयोजनों के समय विशेष श्रद्धा और भक्ति का माहौल बना रहता है।